पथ के साथी

Friday, April 3, 2015

अपने बेगाने हुए



सावित्री चन्द्र 
1
कहत-सुनत दुख आपने,बीत गई  वो रात।
लेकर सुख-सन्देश  फिर, आया नवल प्रभात ।
2
रोने से क्योंकर कटे,मन के सारे क्लेश ।
अपने  बेगाने हुए ,देश हुआ परदेश ।
3
करते-करते प्रेम का, अपनों से इज़हार ।
थकित हुआ मन पा सका,नहीं किसी का प्यार ।
4
एक-एक ग्यारह हुए,ग्यारह से फिर एक ।
और एक के फेर में कर दीन्हा फिर एक ।
5
सोच-सोचकर देश की, मनवा है बेचैन ।
कहाँ गए संस्कार वे,दिवस कटे न रैन ॥
6
जो भी अच्छा ना लगे,उसका कर प्रतिकार ।
वो ही मारणहार है,वो ही पालनहार ।
7
जिसका जैसा आइना,उसका वैसा अक्स ।
मत कर अनदेखा उसे, जो भी  है प्रत्यक्ष ।
8
नारी की रक्षा करो ,कहते बारम्बार 
नारी-पीड़न के वही , असली ज़िम्मेदार ।
9
किसने किसको क्या दिया , पूछत हैं सब लोग ।
उसने  उसको वह दिया , जो है जिसके जोग ।
10
हँसते-रोते दिन कटा ,सोते-सोते  रात ।
प्यार पला जब दिलों में , गए समय की बात ।
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