खड़े जहाँ पर ठूँठ
कभी यहाँ
पेड़ हुआ करते थे।
सूखी तपती
इस घाटी में कभी
झरने झरते थे ।
छाया के
बैरी थे लाखों
लम्पट ठेकेदार ,
मिली-भगत सब
लील गई थी
नदियाँ पानीदार ।
अब है सूखी झील
कभी यहाँ
पनडुब्बा तिरते थे ।
बदल
गए हैं
मौसम
सारे
खा-खा करके मार
धूल
-बवण्डर
सिर
पर ढोकर
हवा हुई बदकार
सूखे
कुएँ ,
बावड़ी सूखी
जहाँ
पानी भरते थे ।