1-गौरैया से
शशि पाधा
अरी गौरैया, चुगले दाना
जब तक रहते खेत हरे ।
देर नहीं जब इन खेतों में
कंकर-पत्थर बिछ जाएँगे
गगन चूमते भवन मंजिलें
धूमिल बादल मँडराएँगे
अरी गौरैया, नीड़ बना ले
जब तक दिखते पेड़ हरे।
जंगल-पर्वत, बाग़- बगीचे
पोखर- झरने कल की बात
न आँगन, न लटके छींके
न तसला, न नेह परात
अरी गौरैया प्यास बुझा ले
जब तक नदिया नीर बहे
सुनसुन तेरी चहक-कुहकुही
आँख खुली थी धरती की
पत्ती-पत्ती
डाली- डाली
छज्जा-खिड़की हँसती सी
अरी गौरैया, जी भर जी ले
जब तक निर्मल पवन बहे ।
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शशि पाधा
इक दिन वो भी आएगा
देख पुरानी तस्वीरें जब
कोई पेड़ बूझ न पाएगा ।
पर्वत सजी चट्टानें होंगी
जंगल का कुछ पता नहीं
टूटेंगे जब सभी घोंसले
बाग़ बगीची लता नहीं
पुस्तक के इक पन्ने में
कोई पशु खड़ा मुस्काएगा
एक समय वो आएगा ।
हो जाएँगे तरुवर बौने
गमले में ही रैन बसेरा
न होगी तब ठंडी छैयाँ
ईंट -मीनारें डालें घेरा
पूछेगी धरती बादल से
मीत, बता कब आएगा
एक समय वो आएगा ।
ढूँढ खोजके रंग रूप तब
बच्चे चित्र बनाएँगे
पीपल बरगद देवदार सब
कथा पात्र हो जाएँगे
किसकी क्या परिभाषा होगी
कौन किसे बतलाएगा
एक समय वो आएगा ।
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