पथ के साथी

Friday, May 20, 2022

1210-गौरैया-आशंका

 

1-गौरैया से

शशि पाधा

  

अरी गौरैया, चुगले दाना


जब तक रहते खेत हरे ।

 

देर नहीं जब इन खेतों में

कंकर-पत्थर बिछ जाएँगे

गगन चूमते भवन मंजिलें

धूमिल बादल मँडराएँगे

अरी  गौरैया, नीड़ बना ले

जब तक दिखते पेड़ हरे

 

जंगल-पर्वत, बाग़- बगीचे

पोखर- झरने कल की बात

आँगन, न लटके छींके

न तसला, न नेह परात

अरी गौरैया प्यास बुझा ले

जब तक नदिया नीर बहे

 

सुनसुन तेरी चहक-कुहकुही

आँख खुली थी धरती की

 पत्ती-पत्ती डाली- डाली

छज्जा-खिड़की हँसती सी

अरी गौरैया, जी भर जी  ले

जब तक निर्मल पवन  बहे ।

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 2- आशंका

शशि पाधा

 

इक दिन वो भी आएगा 

देख पुरानी तस्वीरें जब

कोई पेड़ बूझ न पाएगा ।

 


पर्वत सजी चट्टानें होंगी
 

जंगल का कुछ पता नहीं  

टूटेंगे जब भी घोंसले 

बाग़ बगीची लता नहीं 

 

 पुस्तक के इक पन्ने में 

कोई पशु खड़ा मुस्काएगा 

एक समय वो आएगा ।

 

हो जाएँगे तरुवर बौने 

गमले में ही रैन बसेरा 

न होगी तब ठंडी छैयाँ 

ईंट -मीनारें डालें घेरा 

    पूछेगी धरती बादल से 

मीत, बता कब आएगा 

एक समय वो आएगा ।

 

ढूँढ खोजके रंग रूप तब 

बच्चे चित्र बनाएँगे

पीपल बरगद देवदार सब 

कथा पात्र हो जाएँगे 

 

 किसकी क्या परिभाषा होगी 

 कौन किसे बतलाएगा 

  एक समय वो आएगा ।

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