गीतिका
डॉ. गोपाल बाबू
शर्मा
1
काँटों की बन आई है
फूलों की रूसवाई है ।
प्रीति हुई हरजाई है ।
बस मतलब की काई है ।
कैसी बेशरमाई है ।
कितनी गहरी खाई है ।
सूली पर सच्चाई है ।
तम से छिड़ी लड़ाई है ।
-0-
हर तरफ दायरे
झूठ के आसरे ।
आदमी से डरे ।
पर ज़हर से भरे ।
लोग बनते खरे ।
घाव होंगे हरे ।
शान से जो मरे ।
डाल से जो झरे।
-0-
2-जीवन के अँधेरों में-
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
जीवन के अँधेरों में
बाधा बने घेरों में
सभी द्वारे दीपक जलाए रखना ।
खुशियाँ ही जग को मिलें
मुस्कान के फूल खिलें
थोड़ी-सी रौशनी बचाए रखना ।
इन नयनों
की झील में
झिलमिल हर कन्दील में
प्यार के कुछ दीये , सजाए रखना ।
वही धरा का रोग हैं,
जो स्वार्थ-भरे लोग हैं
तनिक दूरी उनसे ,बनाए रखना ।
-0-