पथ के साथी

Thursday, October 15, 2020

1027- गीतिका

 

गीतिका

डॉ. गोपाल बाबू शर्मा

1

काँटों की बन आई है


फूलों की रूसवाई है ।

 रीति नई अब नीति नई

प्रीति हुई हरजाई है ।

 अपने भी कब अपने अब ,

बस मतलब की काई है ।

 चोरी सीना जोरी भी,

कैसी बेशरमाई है ।

 इंसाँ इंसाँ के दरम्याँ ,

कितनी गहरी खाई है ।

 झूठ उड़ाए  गुलछर्रे,

सूली पर सच्चाई है ।

 आगे जाना ही होगा,

तम से छिड़ी लड़ाई है ।

-0-

हर तरफ दायरे

झूठ के आसरे ।

 आज तो आदमी,

आदमी से डरे ।

 हैं कलश स्वर्ण के,

पर ज़हर से भरे ।

 और को दोष दें,

लोग बनते खरे ।

 प्यार तो प्यार है ,

घाव होंगे हरे ।

 ज़िन्दगी जी गए,

शान से जो मरे ।

 मिल गए धूल में,

डाल से जो झरे।

-0-

2-जीवन के अँधेरों में-

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

 

जीवन के अँधेरों में


बाधा बने घेरों में

सभी द्वारे दीपक जलाए रखना ।

खुशियाँ ही जग को मिलें

मुस्कान के फूल खिलें

थोड़ी-सी रौशनी बचाए रखना ।

इन नयनों  की झील में

झिलमिल हर कन्दील में

प्यार के कुछ दीये , सजाए रखना ।

वही धरा का रोग हैं,

जो स्वार्थ-भरे लोग हैं

तनिक दूरी उनसे ,बनाए रखना ।

-0-