पथ के साथी

Saturday, January 20, 2024

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1- कुछ याद आया ?

भीकम सिंह

 


बाईं  आँख फड़की

कोई करता रहा इंतजार

कुछ याद आया

पूछ रहा है मन । 

 

वो गुलमोहर वाली गली

ठोकर खाते पाँ

कुछ याद आया

पूछ रहा है मन ।

 

जब स्नेह- भरे हाथ

खड़ी कर गए दीवार

कुछ याद आया

पूछ रहा है मन 

 

स्पंदित रहा हफ्तों तक

खिला हुआ गुलमोहर

कुछ याद आया

पूछ रहा है मन।

 

एक लम्बी हँसी जब

खिड़की पर टूट गिरी

कुछ याद आया

पूछ रहा है मन।

 

जब होने लगे तनाव

और चिंघाड़े कोई आवाज़

तब याद कर लेना

सोच रहा है मन।

-0-

2- संध्या- दीप

अनिता मंडा

 


 

अमलतास सी दमकती उम्र में

प्रेम हिंडोले पर बैठे प्रेमी

नहीं लुभाते मुझे उतना

 

जितना लुभाते हैं वे

बिन बुलाए मेहमान से 

आ बैठे बुढापे की आव भगत करते

सुंदरता में चार चाँद लगाते

एक दूसरे का हाथ थामें

साथ- साथ नदी सी बही उम्र में भीगे हुए

अमावस रात में तज़ुर्बों के जुगनू से चमकते

 

उदासियों के बदले गिरवी रखी मुस्कुराहटें

गुल्लक फोड़ निकालते

साँझ के दीपक से 

साथ- साथ जलते

चलते

बहते

पुरवाई से छूकर

सारी थकन को भूलते

कितने सुंदर लगते हैं

संध्या समय से दीप

मधुर मधुर जलते।

-0-

3- क्या बचा पाओगे कल?

 गौतमी पाण्डेय

 


शुद्ध वायु, शुद्ध जल,

क्या बचा पाओगे कल?

गर रहा जारी ये छल,

सोच लो बस एक पल।

नैनो को हरियाली,

चित्त को चैन।

अनवरत उपलब्ध हैं,

हो दिन या,

हो फिर रैन।

मन को सुकून,

फेफड़ों को हवा।

क्षुधा को भोजन,

रुग्ण को दवा।

जो मुफ्त है और प्राप्त है,

अक्सर वही अज्ञात है!

अभिशप्त ना कर दो उसे,

जो मिल रही सौगात है।

बिना कुछ दिए,

बिना कुछ माँगे।

मिला है सब कुछ,

बिना कुछ त्यागे।

मानव हो तो यह मान लो,

हो दृढ़प्रतिज्ञ, अब ठान लो।

प्रत्यक्ष को पहचान लो,

विध्वंस का संज्ञान लो!

कर्तव्य अपना जान लो,

दायित्व अपना पूर्ण कर

सम्मानितों! सम्मान लो।

सम्मानितों, सम्मान लो।

ई-मेल-gautmipandey@gmail.com