पथ के साथी

Tuesday, January 21, 2020

946-दोहे


दोहे
 1-अनिता ललित                         
1
तुम बिन कुछ भाता नहीं, टूटी मन की आस।
लगती फीकी चाँदनी, आँखें बहुत उदास।।
2
रिश्तों की बोली लगे, कैसा जग का खेल
मतलब से मिलते गले,, भूले मन का मेल।।
3
रिश्तों की क़ीमत यहाँ, जिसने समझी आज
दुख उसके बाँटें सभी, पूरे होते काज।।
4
छोटे पंख पसार कर, उड़ने की ले आस
दाना बिखरा न मिला, चिड़िया आज उदास।। 
5
कितना भी हँस लीजिए, छिपे न मन की पीर
सहरा होठों पर ढले, अँखियन छलके नीर।।  
6
छह-छह बच्चे पालते, मात-पिता क संग
बूढ़े हों माँ-बाप जब, बच्चे होते तंग।।
7
मैंने तो चाहा सदा, पाऊँ तेरा साथ 
तूने क्यों हर पल छला, छोड़ा मेरा हाथ।।
8
फूल कहे 'ना त्यागि!', ये काँटों का हार  
अपनों का उपहार ये, इस जीवन का सार।।
9
अपनों ने कुछ यूँ छला, छीना प्रेम-उजास। 
अश्कों में बहने लगी, मन की हर इक आस।।
10
सुख-दुख के ही ख्रेल हैं, क्या अवसर, क्या मोड़
अपने ही हैं बाँधते, अपने देते तोड़।।
-0-
2-डॉ.सुरंगमा यादव
1
कहना था हमको बहुत, ढूँढे शब्द हजार।
बात जुबाँ पर रुक गई,देखो फिर इस बार।।
2
मिलन खुमारी थी चढ़ी,अलसा थे नैन।
झकझोरा   दुर्दैव ने ,स्वप्न झरे बेचैन।।
3
कपट, बुराई ना छिपे, कितने करो उपाय।
जल में बैठी रेत ज्यों,हिलते ही उतरा।।
4
दर्द दिया तुमने हमें,किया बहुत उपकार।
गिरकर उठने की कला,सिखा गए दिलदार।।
5
बाधाओं से   हारते ,कर्महीन  इंसान ।
अथ से पहले अंत का,कर लेते अनुमान।।
6
सुगम राह ही चाहता,मन कैसा नादान।
लंबी दूरी देखकर , भरता नहीं उड़ान।।
7
खूब दिखा जिंदगी, नखरे और गुरूर।
चल देती मुँह फेरकर,पल में कितनी दूर।।
8
मीठा-मीठा बोलकर, दे दी गहरी चोट।
शब्द आवरण में ढका,मन का सारा खोट।।
9
मन आँगन में रोप दो, प्रेम-दया की बेल।
कटुता मिट जा सभी ,बढ़े परस्पर मेल।।
10
धूप सयानी हो गई, बचपन में ही खूब।
गरमी की देखो हनक ,सूखी जा दूब।।
-0-
3-मंजूषा मन
निशदिन खोजा आपको, थामे मन का छोर।
रहे  हृदय  से   दूर  जबभीगे  नैना -कोर।