पथ के साथी

Tuesday, October 31, 2017

773

1-डॉ .भावना कुँअर
1
जब भी तू सपनों में आता,सूनापन भर जाता
जैसे सूखी डाली पर,नया फूल खिल जाता
हौले-हौले आकर मन में,प्रेम दीप जल जाता
रोशन करके मेरी दुनिया,बन सूरज उग जाता।

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रामेश्वर काम्बोजहिमांशु
1
जिन पर हमने किया भरोसा, सारे भेद छुपाकर निकले।
खून -पसीने से जो सींचे, वे सब हमें मिटाकर निकले।
सारी उम्र ग़ुज़ारी ऐसे , जब भीड़  मिली थी छलियों की
तुमको हमने समझा गागर, पर तुम पूरे सागर निकले ॥
2
जीवन में सुख यूँ ही कम हैं
चौराहों पर बिखरे गम है॥
फिर भी तुम हो कहाँ अकेले ।
साँसों के कम्पन में हम हैं॥

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Saturday, October 28, 2017

772

मुक्तक
1-सुनीता काम्बोज 
वो क्या अपने जो देते हैं,चोट हमेशा
ले लेते हैं रिश्तों की वो,ओट हमेशा
सभी खूबियाँ जग वो, गिनवाते हैं
उनको मेरे अंदर दिखते खोट हमेशा
2
कभी  हो प्यार की बातें , कभी तकरार की बातें
कभी हो जीत की बातें, कभी हो हार की बातें
गुजर जाएगी बातों में हमारी जिंदगी सारी
कभी इस पार की बातें, कभी उस पार की बाते
3
जब मन का ये खालीपन भर जाएगा
लौट परिंदा अपने ही घर जाएगा
भारी पत्थर डूब गए गहराई में
लेकिन तिनका लहरों पर तर जाएगा
4
तेरी आँखों में वो चाहत समर्पण ढूँढती हूँ मैं
समन्दर से मिले गंगा वो अर्पण ढूँढती हूँ मैं
मेरी हद से बढ़ी दीवानगी का ही सबब है ये
तेरी सूरत बसी जिसमें वो दर्पण ढूँढती हूँ मैं
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नई कलम

सरहद पर एक जवान
इरशाद

जी रहे हैं इस पल को
    कोई तो अपना सहारा होगा
हमारे होंठों की खुशी की खातिर
    सरहद पर मर रहा होगा ।

छोड़ कर आया माँ की रोटी
    वो भी कहीं रोया होगा
अपने एक वतन की ख़ातिर
    सब अपना खोया होगा ।

याद करो एक बार उसको
    किसी का वो भी लाल होगा
आंसू तो बहाआे तुम अपना
नही तो उसका अपमान होगा ।

बहन भी करती होगी दुआ
    भाई भी तो रोया होगा
बाप टूट कर हार गया
    क्या यह देश रोया होगा ।

वो भी कफन में रोता होगा
    देख देश कहानी को
देश तो आज़ाद हो गया
    पर गुलाम है आज भी जवानी तो ।             
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2- सहती बेटी-           

       -इरशाद

जब वो छोटी गुड़िया थी 
    न किसी की प्रिया थी 
सब घूरा करते थे उसको ;
    क्योंकि वो एक बेटी थी ।

फिर भी उसे कलंक कहा गया
    बिना कहे सब सहती थी
कुछ न दिया समाज ने उसको
    क्योंकि वो एक बेटी थी ।

बेटा तो सब छोड़ गया
   माँ उसे समझाती थी
जब रहा न कोई भी अपना 
   वही लाठी बन जाती थी ।

पढ़ने से उसे रोका जाता
    गृहिणी कहलाती थी
सारी खुशियां छीन ली उसकी
    क्योंकि वो एक बेटी थी ।

विधवा जब वो हो गई
    कलंक वाहिनी कहलाती थी  
धिक्कारा करता समाज ये उसको
    क्योंकि वो एक बेटी थी ।

करूँ प्रार्थना समाज से
    नहीं पूजना कोई देवी
छोड़ भी दो ये भेदभाव
    मान लो बस उसको बेटी
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सम्पर्कसुपुत्र मो० इकबाल,  979/7 अशोक विहार  कॉलोनी बेरी वाली मस्ज़िद,                               पानीपत, (132103)-   Irshad Malik <irshadmalik1135@gmail.com>

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Tuesday, October 24, 2017

771


उमंगें खो गई हैं -कृष्णा वर्मा


अतीत में डूबा
आज सुबह से टूट-टूट पड़ता मन
पनियाई हैं पलकों की कोरें 
तुम्हारे जाने ने
मायने ही बदल दिए
राखी और भाईदूज के
उमंगें खो गई हैं गहरे कहीं अँधेरों में
ना तुम रहे ना जननी
ना रहीं वह प्यार पगी
चाहत में पसरी बाहें
और ना ही इंतज़ार में
टँगी स्थिर- सी पुतलियाँ
कैसी ठंडी हो गई हैं अब वह
अपनापे की ऊष्मा से सनी
घर की कोसी दीवारें
खिड़कियों से झाँकती खुशियाँ
दहलीज़ की चहक
वह मिलन के पल
वे स्नेह -प्रेम की बौछारें
वे आसीसों की फुहारें
बार-बार प्रेम पूर्ण मेरे
मन पसंद व्यंजन खिलाना
रह-रह तड़पा जाती हैं वह प्यार की मिठास
उस पर उपहार में क़ीमती तोहफ़ा
इतना नहीं भैया-- कहते ही
तुम झट से कहते क्यों नहीं-- हक है तुम्हारा
और कैसे माँ तुम भी साथ ही कहने लगतीं थीं
बेटियाँ तो बाम्हनी होती हैं बिटिया
तुम्हें देने से ही तो बरकत है इस घर में
कैसे भूलूँ भैया वह नेह और दुआओं से सिंचा
काँधे पर तुम्हारा स्पर्श
गले लगा मिला माँ से वह
अव्यक्त अनूठा प्यार
आज आँखों में चलते वह दृश्य
कितनी दुख और उदासी की
तरेड़ें छोड़ गए हैं मेरे बेकाबू मन पर।

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