ख़लील ज़िब्रान
(अनुवाद : सुकेश साहनी )
एथेन्स के राजमार्ग पर दो कवियों की भेंट हो
गई। मिलकर दोनों को खुशी हुई।
एक कवि ने दूसरे से पूछा, ‘‘इधर नया क्या लिखा है?’’
दूसरे कवि ने गर्व से कहा, ‘‘मैंने अभी हाल ही में एक कविता लिखी है जो मेरी सभी रचनाओं में श्रेष्ठ है।
मुझे लगता है यह ग्रीक में लिखी गई सभी कविताओं से भी श्रेष्ठ है। यह कविता मेरे
गुरू की स्तुति में लिखी गई है।’’
तब उसने अपने कुरते से पाण्डुलिपि निकालते हुए
कहा, ‘‘अरे देखो,
यह तो मेरे पास ही है। इसे सुनकर मुझे प्रसन्नता होगी। चलो, उस पेड़ की छाया में बैठते हैं।’’
कवि ने अपनी रचना पढ़ी, जो काफी लम्बी थी।
दूसरे कवि ने नम्रतापूर्वक प्रतिक्रिया दी, ‘‘वह महान रचना है, कालजयी रचना है। इससे आपको बहुत प्रसिद्ध
मिलेगी।’’
पहले कवि ने सपाट स्वर में पूछा, ‘‘तुम आजकल क्या लिख रहे हो?’’
दूसरे ने उत्तर दिया, ‘‘बहुत थोड़ा लिखा है मैंने। केवल आठ लाइनें–एक बाग में खेल रहे बच्चे की स्मृति में।’’ उसने
अपनी रचना सुनाई।
पहले कवि ने कहा, ‘‘ठीक ही है,
ज्यादा बुरी तो नहींे है।’’
आज दो हज़ार वर्ष बीत जाने पर भी उस कवि की आठ
पंक्तियाँ प्रत्येक भाषा में बड़े प्रेम से पढ़ी जाती हैं।
दूसरे कवि की रचना शताब्दियों से पुस्तकालयों
और विद्वानों की अलमारियों में सुरक्षित अवश्य रही है पर उसे कोई नहीं पढ़ता।
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