पथ के साथी

Wednesday, January 7, 2015

मेरी पसन्द

ज्योत्स्ना प्रदीप
बेशकीमती                          
अक्षर हीरे-मोती  
ख़त तुम्हारा
भारत में हाइकु की उजली भोर की किरणों की प्रथम पंक्ति में डॉ.शैल रस्तोगी मुस्कान बिखेर रही हैं। कितने ही सावन व पतझर की इस साक्षी ने जीवन की करौंदे -सी खट्टी व शहतूत -सी मीठी अनुभूतियों को अपनी रचनाओं मे सहज ही ढाला है । साहित्य के प्रति वह सदैव निष्ठवान् रही हैं  ,आज से दस साल पहले जब मैने उनका यह हाइकु पढ़ा था, तो मै विस्मयाभिभूत रह ग थी ।
प्रिय का लिखा कोई भी शब्द प्रिया के लिए अमूल्य है .....उसे अन्य रत्न की चाह नहीं । उसके तन-मन का सौन्दर्य इन्हीं बेशकीमती शब्दों के रत्नों से दमक उठा .....इस अमूल्य हाइकु ने अल्प में व्यापक भावों  को सहेजा है । अनुभूति और अभिव्यक्ति ,दोनों ही पक्षों  में यह सशक्त है ।यह गहन प्रेम का कलात्मक चित्रांकन है ।
नन्हे से हाइकु को इन्होने सम्प्रेषणीयता की छुअन,बोधगम्य भाषा के आलिंगन तथा उर्दू के मीठे शब्दों के  चुम्बन के उपहार देकर बड़े लाड़-प्यार से बड़ा किया है । इस वात्सल्यमयी धात्री ने हाइकु के सर्वांगपूर्ण भविष्य का बड़ा ही निराला निर्माण किया है । प्रेम के अभाव मे काव्याभिव्यक्ति की पूर्ण प्राप्ति नहीं हो सकती .......यह भी इन्होंने प्रमाणित किया है ।संवेदनात्मक लय की यह शब्द साधना पाठक को प्रभावित किए बिना नहीं रहती।
-0-