रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1-पंछी करे न काम
अजगर करे न चाकरी
पंछी करे न काम ।
अजगर उलटे लटक रहे हैं
दूध रात-दिन गटक रहे हैं
काम नहीं करते रत्ती भर
फण पत्थर पर पटक रहे हैं
अख़बारों में छप
रहा
अजगर का ही नाम ।
पंछी की जब से बात चली
उल्लू बोले हैं गली-गली
नुक्कड़ पर चौराहों पर भी
इनकी ही सूरत लगी भली ।
घर-घर में जाकर करें
अब उल्लू प्रणाम ।
ढेरों अजगर दूकानों में
जंगल में, कब्रिस्तानों
में
सोफ़े, कुर्सी ऊपर बैठे
ये अजगर रेगिस्तानों में ।
पूजा करता नेम से
अजगर सुबह-शाम ।
पंछी बैठे हैं दफ़्तर में
दाने-दुनके के चक्कर में
अन्तिम साँसें गिनती है अब
फ़ाइल जो लेटी ठोकर में ।
हिलना-डुलना है मना
बिना लिये कुछ दाम
।
-0-
2-शाम
भीगे नयन खुले किवारे, गगन हुआ अभिराम ।
नहा-धोकर बैठी द्वारे ,
बनी जोगिया शाम ।
3-मुक्तक
1
रात का छाया अँधेरा सोच कैसी
दूर है बैठा सवेरा सोच कैसी ।
तू अकेला ही भोर ला सकता यहाँ
साथ में साथी न तेरा सोच कैसी । ।
2
सूने हृदय में ज्योति जगाकर देख ले
कभी ग़ैर को अपना बनाकर देख ले ।
मुस्कान से भर जाएगी यह ज़िन्दगी
किसी रोज़ दो आँसू बहाकर देख ले ।।