पथ के साथी

Wednesday, November 7, 2012

सिर्फ़ बचा अपमान


दोहे
रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
1
कुटिया रोई रात भर , ले भूख और प्यास ।
महल बेहया हो गए , करते हैं  परिहास । ।
2
दीमक फ़सलें चट करें ,घूम -घूम घर द्वार ।
गाँव- नगर लूटे सभी, लूटे सब बाज़ार  । ।
3
इज़्ज़त लुटी गरीब की , लूट लिया हर कौर ।
डाकू  तो बदनाम थे , लूटे कोई और  । ।
4
पोथी से डरकर  छुपा , जेबों में कानून ।
जिसकी जेबें हों भरी , उसको चढ़े जुनून  । ।
5
कर्ज़ चढ़ा हल तक बिका, बिके खेत खलिहान ।
दो रोटी की भूख थी, सिर्फ़ बचा अपमान । ।
-0-