पथ के साथी

Wednesday, September 27, 2017

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1- मैं रचूँगा-
प्रियंका गुप्ता

मैं रचूँगा
तुम्हारे नाम पर एक कविता
उकेरूँगा अपने मन के भाव
कह दूँगा सब अनकहा
और फिर
बिना नाम की उस कविता को
कर दूँगा
तुम्हारे नाम
क्योंकि
मैं रहूँ न रहूँ
कविता हमेशा रहेगी
तुम्हारे नाम के साथ...।

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2-कुछ अलग से लोग
-प्रियंका गुप्ता

कुछ अलग से लोग
मिल जाते हैं यूँ ही
राह चलते
न तुम्हारे शहर के
न ही अपने से किसी गाँव के
फिर भी
मिलते हैं वो अक्सर
बेसबब, बेमतलब...
दूर होकर भी
चले आते हैं ख्वाबों में
ख्यालों में;
तुम्हारे माथे पर उनकी याद का बोसा
मानो
चुपके से कोई
नींद में आकर रख गया हो
दुआ का कोई फूल
तुम्हारे सिरहाने,
और जाते-जाते
कानों में कह गया हो-
खुश रहना सदा
क्योंकि
तुम मुस्कराते हुए बहुत अच्छे लगते हो
सच्ची...।
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एम.आई.जी-292, कैलाश विहार,
आवास विकास योजना संख्या-एक,
कल्याणपुर, कानपुर-208017(उ.प्र)
ईमेल: priyanka.gupta.knpr@gmail.com

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3-जिंदगी........
परमजीत कौर 'रीत'


गीत शीरीं गा रही है ज़िन्दगी
ख़ुद को यूँ बहला रही है ज़िन्दगी

क्या ,समझ में आ रही है ज़िन्दगी?
रंग बदले जा रही है ज़िन्दगी

वक़्त से बढ़कर सिकंदर  कोई अब
रू-ब-रू दिखला रही है ज़िन्दगी

जिन खिलौनों से ये खेले,उनसे ही
तालियाँ बजवा रही है ज़िन्दगी

हौंसले हैं रेज़ा-रेज़ा उड़ने को
फिर भी पर फैला रही है ज़िन्दगी

तीरगी अपना ठिकाना दे बदल 
शम्मे-दिल सुलगा रही है ज़िन्दगी

'रीत' बस मासूमियत रखना बचा
चाह धोखे, खा रही है ज़िन्दगी

4- गुज़री  है-
 परमजीत कौर 'रीत'


जीस्त यूँ इम्तिहाँ से  गुज़री  है
एक चिड़िया  तूफां से  गुज़री  है

बेख्याली में आह निकली जो
क्या बता,कहाँ से  गुज़री  है

बात को इक खबर बना देगी
ये हवा जो यहाँ से  गुज़री  है

ख्वाहिशों की पतंग याअल्लाह!
जब उड़ी कहकशां से  गुज़री  है

दो किनारों के बीच राख़ बची
बर्क यूँ दरमियाँ से  गुज़री  है

छोड़ जाती है कुछ निशां अपने
ये कज़ा ,जब जहाँ से  गुज़री  है

'रीत' परछाइयों को ले काँधे
याद हर ,दिल मकाँ से  गुज़री  है

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