पथ के साथी

Saturday, September 8, 2018

844



नदी के आगोश में
डॉ कविता भट्ट
1
लिपटा वहीं
घुँघराली लटों में
मन निश्छल,
चाँद झुरमुटों में
न भावे जग-छल ।
 2
चित्र :रमेश गौतम 
ढला बादल
नदी के आगोश में
हुआ पागल
लिये बाँहों में वह
प्रेमिका -सी सोई।
3
मन वैरागी
निकट रह तेरे
राग अलापे,
सिंदूरी सपने ले
बुने प्रीत के धागे।
4
मन मगन
नाचता मीरा बन
इकतारे -सा
बज रहा जीवन
प्रीत नन्द नन्दन!
5
रवि -सी तपी
गगन पथ  लम्बा
ये प्रेमपथ ,
है बहुत कठिन
तेरा अभिनन्दन!