सविता अग्रवाल 'सवि' (कैनेडा)
भरोसा जो टूटा था
जोड़ रही वर्षों से....
बोलियाँ खामोश हैं
कितने ही अरसों से ...
दस्तक भी गुम है अब
बारिश के शोर में ....
अधूरे जो वादे थे
दब गए संदूकों में ...
नफरतें धो रही
प्रेम रस के साबुन से ...
चट्टानें जो तिड़क गईं
भर ना पाई परिश्रम से ...
उड़ गई जो धूल बन
ला ना पाई उम्र वही ...
नीर, जो
सूख गया
लौटा ना सकी सरोवर में ...
अक्षर जो मिट गए
लिख ना पाई फिर उन्हें ...
पुष्प जो मुरझा गए
खिल ना सके बगिया में ...
पत्ते जो उड़ गए
लगे ना दरख्तों पर ...
बर्फ़ जो पिघल गई
जम ना सकी फिर कभी ...
अगम्य राहें बना ना पाई
सुगम सी डगर कभी ...
निरर्थक यूँ जीवन रहा
हुआ ना सार्थक कभी ....
फिर भी एक आस है
बढ़ने की चाह है ....
हौसले बुलंद हैं ...
चाहतें भी संग हैं ....
-0-