पथ के साथी

Monday, October 12, 2020

1026-चाहत

 सविता अग्रवाल 'सवि' (कैनेडा)

 

भरोसा जो टूटा था

जोड़ रही वर्षों से....

बोलियाँ खामोश हैं

कितने ही अरसों से ...

दस्तक भी गुम है अब

बारिश के शोर में ....

अधूरे जो वादे थे

दब गए संदूकों में ...

नफरतें धो रही

प्रेम रस के साबुन से ...

चट्टानें जो तिड़क गईं

भर ना पाई परिश्रम से ...

उड़ गई जो धूल बन

ला ना पाई उम्र वही ...

नीर, जो सूख गया

लौटा ना सकी सरोवर में ...

अक्षर जो मिट गए

लिख ना पाई फिर उन्हें ...

पुष्प जो मुरझा गए

खिल ना सके बगिया में ...

पत्ते जो उड़ ग

लगे ना दरख्तों पर ...

बर्फ़ जो पिघल ग

जम ना सकी फिर कभी ...

अगम्य राहें बना ना पाई

सुगम सी डगर कभी ...

निरर्थक यूँ जीवन रहा

हुआ ना सार्थक कभी ....

फिर भी एक आस है

बढ़ने की चाह है ....

हौसले बुलंद हैं ...

चाहतें भी संग हैं ....

-0-

1025

 1-प्रीति अग्रवाल ( कनाडा)

 1. ज़िद्दी

 अनजाना शहर

मंज़िलें लापता

ख़्वाहिशें ज़िद्दी -

दर -दर घुमाएँ,

रास्ते भुलाएँ,

हमें हराएँ,

बड़ा थकाएँ,

अपनों की याद में

खूब रुलाएँ....।

काश! कोई आए -

हाथ बढ़ाए,

हमको समेटे,

प्यार जताए,

बिन माँगे दे माफ़ी,

मज़बूती से थामे,

हमें साथ अपने

वापस ले जाए !!!

       -0-

2. मील का पत्थर

 

मील के पत्थर से

रहा न गया

रुआँसा था कल तक

आज रो ही पड़ा...!

-एक तू ही अकेली

है ठहरी यहाँ

बाक़ी किसी को

है  फ़ुर्सत कहाँ..!

भागे फिरते हैं पागल- से

बस भीड़ में

जाना किसको, किधर,

ये खबर है कहाँ..!

जो मेरा ही जश्न

न मनाएँगे वो

पछतावे के सिवा

कुछ न पाएँगे वो..!

मैं तो थक गया

तू ही समझा ज़रा-

"हर लम्हा है मंज़ि

अरे नासमझ,

ये न लौटेगा फिर

इसे ज़ाया न कर।"

-0-

2-संध्या झा 

लक्ष्यभेद 

 

लक्ष्य पर नर टीका

लक्ष्य भेद कर दिखा ।

 

लक्ष्य के लिए जिया 

लक्ष्य पर तूने अपना

 सर्वस्व वार हैं दिया 

 फिर है ऐसी बात क्या ?

 जो डगमगा रहा हूँ

 तू तन में स्पंदन हैं

 और थरथरा रहा है तू 

 मनु की तू संतान हैं

 भगीरथ वंश की तू आन हैं

 तू चाहे तो पर्वत चीर दे 

 सुरसरि को धरा पर खींच ले 

 तो नाम ले एकदंत का 

 और विघ्न का तू नाश कर

 

 लक्ष्य पर नर टिका 

 लक्ष्य भेद कर दिखा ।।    

-0-