पथ के साथी

Tuesday, September 6, 2011

होम कर दी (हाइकु गीत)


-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

ईर्ष्या का कुण्ड
लील गया सारी ही
सद्भावनाएँ ।

होम कर दी
हैं शुभकामनाएँ
प्यारी ॠचाएँ ।

दे दी आहुति
वाणी के संयम की
दो ही पल में,
पिला दिया ज्यों
दूध , मिलाकर के
हलाहल में;

घृणा का घृत
निर्मम चषक में
भर ही लाए ।

यज्ञ किया है
किस सुख के लिए ?
नहीं है पता,
मरता मन
शाप देकर और
करता ख़ता ;

उठेगा धूम -
गीली जो समिधाएँ
संग हवाएँ ।

अशुद्ध मन्त्र-
कुसमय  का पाठ
भारी पड़ता,
दुख ही देगा
भूल -शूल चुभके
जब गड़ता;

मन -अश्व  को
न रोकती बल्गाएँ
न वर्जनाएँ ।

आग लहकी
पुरोहित झुलसे
यजमान भी
नफ़रतों ने
भस्मीभूत किए हैं
सामगान भी

अहित सोच
जीवित रह पाती
न  प्रार्थनाएँ
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