डॉ अनीता कपूर की कविताएँ
[बात 1986 की है । अनीता कपूर जी का पहला काव्य संग्रह अनमोल मोती पढ़ने का अवसर मिला । कविताओं का स्वर थोड़ा हटकर था ।वैयक्तिक अनुभूतियों का समष्टिगत विस्तार । इसी क्रम में ‘अछूते स्वर’ संग्रह भी आ गया । विमोचन के अवसर पर अनीता जी ने मुझे दिल्ली बुलाया ।चाहकर भी मैं नहीं आ सका । परीक्षा-प्रभारी होने के कारण बाधा आ गई । इस संग्रह की कविताएँ और अधिक प्रभावित करने वाली थीं। उस समय मैंने किसी पुस्तक की समीक्षा भी लिखी थी ।कुछ वर्ष बाद सम्पर्क टूटा कि अचानक जुलाई 2005 में तब फोन पर बात हुई, जब अनीता कपूर बेटे की शादी के सिलसिले में दिल्ली आई हुई थीं। फिर वही अन्तराल । जीवन की भागदौड़ किसी आदमी को कहाँ पहुँचा दे ,पता नहीं । आपने विभिन्न परिस्थितियों में अपनी उसी काव्य ऊर्जा को और अपने उसी आत्मीय एवं पारिबारिक सौहार्द्र को आज तक सहेजकर रखा है । यहाँ डॉ अनीता कपूर के परिचय के साथ इनकी कविताएँ दी जा रही हैं।
-रामेश्वर काम्बोज ’हिमांशु’]
परिचय
डॉ.अनीता कपूर
जन्म : भारत
शिक्षा : एम . ए.,(हिंदी एवं इंग्लिश ), पी-एच.डी (इंग्लिश),सितार एवं पत्रकारिता में डिप्लोमा.
कार्यरत : कवियत्री / लेखिका/ पत्रकार (नमस्ते अमेरिका समाचारपत्र) एवं अनुवादिका
गतिविधियाँ : मीडिया डायरेक्टर (उ प मं ), उत्तर प्रदेश मंडल ऑफ़ अमरीका, AIPC ( अखिल भारतीय कवियत्री संघ ) की प्रमुख सदस्या, भारत में लेखिका संघ की आजीवन सदस्या, वूमेन प्रेस क्लब दिल्ली की आजीवन सदस्या, अमेरिका में भारतीय मूल्यों के संवर्धन एवं सरंक्षढ़ हेतु प्रयत्नशील. नारिका (NGO) तथा भारतीय कम्युनिटी सेंटर में समय समय पर अपनी सेवाएँ देना, फ्रेमोंट हिन्दू मंदिर और सांस्कृतिक केंद्र में योगदान हेतु अनेकों बार पुरस्कृत, हिन्दी के प्रचार -प्रसार के लिए हिन्दी पढ़ाना और सम्मलेन करना, अमेरिका में हिंदी भाषा की गरिमा को बढ़ाना, बहुत से कवि सम्मलेन में कविता पाठ, अमेरिका और भारत के बहुत से पत्र-पत्रिकाओं एवं वेब पत्रिकाओं के लिए अनेक विधाओं पर लेखन,और साथ ही साथ ज्योतिष-शास्त्र में विशेष रुचि.
विशेष: फिल्म एंड सिटी सेंटर ,नोयडा द्वारा " ग्लोबल फैशन अवार्ड ", से सम्मानित. बहाई इंटरनेशनल कम्युनिटी, दिल्ली , द्वारा " महिलाओं के उत्कर्ष के लिए विशिष्ट योगदान " पुररस्कार से सम्मानित, लायंस क्लब द्वारा सामजिक कार्यों के लिए कई बार सम्मानित, टी.वी एवं रेडियो से कई कार्यक्रम प्रसारित, हिंदी अकादमी दिल्ली द्वारा आयोजित कवि समेलन में प्रथम पुरस्कार.
प्रकाशन: बिखरे मोती , अछूते स्वर एवं कादम्बरी (काव्य -संग्रह ), अनेकों भारतीय एवम अमेरिका की पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, कविता, कॉलम, इंटरव्यू एवम लेख प्रकाशित. प्रवासी भारतीय के दुःख दर्द और अहसासों पर एक पुस्तक प्रकाशन के लिए तैयार.
संपर्क: 3248 Bruce Drive, Fremont, CA 94539 USA
Phone: 510-565-9025
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डॉ अनीता कपूर
1-मैंने देखा है
मैंने देखा है -
लोग
आपस में बात करते हैं
अक्सर भूल कर चल देते हैं
पीछे नहीं देखते;
मगर में कहती हूँ-
किसी से बात कर सकना भी
अपने में एक सम्बन्ध है
कई सम्बन्धों से गहरा सम्बन्ध
इसे नाम
चाहे जो दिया जाए
सम्बन्ध तो सम्बन्ध ही होते हैं
किसी के प्रति विशेष आकर्षण अनुभव करना
और लगने लगना असाधारण
वो आकर्षण
हटकर होता है ।
शारीरिक आकर्षण से
चुम्बकीय होता है
यह रिश्ता
खींचता है मन को
मन की तरफ
सींचता है
व्यक्तित्व को
पौधे की तरह
फिर खिलते हैं
फूल
विचारों के
और आती है सुगंध
अनुभवों की
तब अपने आप में
हो जाता है पूर्ण
वो सम्बन्ध अनजाना.
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2-वसीयत
हमारे
पूर्वजों की सारी
वसीयत
हमारी ही तो है
उनका अस्तित्व व संस्कृति हमारी ही
धरोहर है
फिर क्यों हम
आँखें मूँदें बैठे हैं
कितना अजीब व सुखद है
यह एक शब्द
पूर्वज
गौर से झाँकें
और डूबकर
देखें
तो सारा अतीत हममें ही छिपा था
वर्तमान भी हमसे है
भविष्य भी हमसे होगा
सुनहरा भविष्य
तब ही होगा
अगर
हम
पूर्वज शब्द
रखें याद
तो दोबारा
हर युग में
राम , नानक
बुद्ध और महावीर होंगें
जीवन धारा वही है
रसगंगा भी वही है
फिर यह
घाट
अलग अलग
क्यों ?
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3-उसके जाने के बाद मैं
उसके जाने के बाद मैं
ताकती रही उसके क़दमों के निशाँ
मैंने कहा था उसे -
हो सके तो उन्हें भी साथ ले जाना
अब कितना मुश्किल है उसका जाना..
जिंदगी के जाने के बाद मै
छूती रही उसकी परछाई के निशां
मैने कहा था उसे
हो सके तो साँसे भी साथ ले जाना
अब कितना मुश्किल है जीना ....
यादों के जल जाने के बाद मै
बिनती रही उसकी राख़ के निशां
मैने कहा था उसे
हो सके तो राख़ उढ़ा ले जाना
अब कितना मुश्किल हैं ढेर में जीना....
ताकती रही उसके क़दमों के निशाँ
मैंने कहा था उसे -
हो सके तो उन्हें भी साथ ले जाना
अब कितना मुश्किल है उसका जाना..
जिंदगी के जाने के बाद मै
छूती रही उसकी परछाई के निशां
मैने कहा था उसे
हो सके तो साँसे भी साथ ले जाना
अब कितना मुश्किल है जीना ....
यादों के जल जाने के बाद मै
बिनती रही उसकी राख़ के निशां
मैने कहा था उसे
हो सके तो राख़ उढ़ा ले जाना
अब कितना मुश्किल हैं ढेर में जीना....
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