पथ के साथी

Thursday, May 21, 2020

990-अनुभूतियाँ

प्रीति अग्रवाल
1.
दौर मुश्किल
बड़ी कशमकश हो रही है,
गुनाहों की महफ़िल
सजी दिख रही है।
2.
सोचा था मनमानी
मुद्दतों चलेंगी,
ज़्यादतियाँ तभी
बेशुमार हमने की हैं!
3.
समझा दिया है नन्हे,
नादां-से दिल को,
जब न वो दिन रहे
तो न ये दिन रहेंगे!
4.
माँ, सपना बुरा है
बहुत डर लगा है,
तू सिर पे हाथ फेर
और हमको जगा दे!
5.
जो पूछे कोई
तुम मेरे कौन हो?
हमदर्द, हमज़ुबाँ
हमसफ़र, क्या कहूँ??
6.
वही है वक़्त
उसकी चाल भी वही,
बदला है जो
बस नज़रिया नया है!
7.
कोई हम 'पर' हँसे
या हम 'संग' हँसे,
बस रुलाने का सेहरा
न हमपर बँधे!
8.
शोहरत के पीछे
यूँ न पड़, तू सँभल!
बड़ी बेवफ़ा है,
किसी की न होगी!
9.
आज पुरवाई चुपके से
कानों में कह गई-
तू भी जिंदा है
कुछ पल तो जी भर के जी ले!!

10.
कठपुतली नाचे
ता-थैया ता-थैया,
बस डोर अब सही
हाथों में थमी है!
11.
सोचा बोलने से पहले,
तोल लूँ मैं ज़रा,
पर जाने कुछ कहने को
रहे न रहे!
12.
इबादत कि
इतनी मुद्दत हुई है,
दुआओं का भी
न असर हो रहा है।
13.
शोहरत कमाने की
हसरत सही है,
बदनामी से पर
यारों बात न बनेगी!
14.
ऐ बदरा !
तू कहीं दूर जा बरस,
यहाँ के लिए
मेरे नैना ही हैं काफ़ी!
15
परेशाँ है झूठ
कभी कहे तो कभी पूछे,
मैं सही! मैं सही?
मैं सही! मैं सही?

सच्चाई आराम से
मुस्कुरा रही है,
वो तब भी सही
वो अब भी सही!!
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