कमबख्त़ पुराने दोस्त
पूर्वा
शर्मा
यादों की सूखी फसल को
फिर से लहलहाता कर गए
कल कुछ कमबख्त़ पुराने दोस्त
मिल गए
फिर जी गया मैं इस ज़िन्दगी को
वो कुछ हसीं पल याद दिला गए
कल कुछ कमबख्त़ पुराने दोस्त
मिल गए
दिल की तंग गलियों में
वे कमबख्त़ फिर से समा गए
कल कुछ कमबख्त़ पुराने दोस्त
मिल गए
मुस्कराहट कम ही नहीं होती
ऐसी दवा वे सभी मुझे दे गए
कल कुछ कमबख्त़ पुराने दोस्त
मिल गए
न जाने कौन-सा अर्क, कौन-सा इत्र
वे शीशी भर उड़ेल गए
कल कुछ कमबख्त़ पुराने दोस्त
मिल गए
महकता रहा रातभर मैं
और सुबह उनके ख़्वाब महका गए
कल कुछ कमबख्त़ पुराने दोस्त
मिल गए
कमबख्त़ पुराने दोस्त क्या
मिले
मुझ कमबख्त़ को भी गुलज़ार कर
गए
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