1-मुझको सुननी हैं
डॉ. सुषमा गुप्ता
मुझको अपने होने को जुनूँ की हद
तक मिटाना है।
मुझे जीने हैं किरदार बहुत सारे,
और नकार देना है मेरा, मुझ जैसा होने को।
अपनी आँखों में रखनी है मुझे हज़ार आँखें ।
उन सबकी आँखें, जो धोखा देते भी हैं, धोखा खाते
भी हैं।
जो
प्रेम करते भी हैं और बेज़ार भी हो जाते हैं
जो लुटते हैं शिद्दत से, जो शिद्दत से लूट भी जाते हैं ।
मुझको उन सबके दिल रखने हैं अपने सीने में ।
मुझको सुननी हैं हज़ार हा धड़कनें,
मुझको सुननी हैं सर्द आहें और ठंडी चीखें ।
मुझको
जलाने हैं अपने ही माँस के टुकड़े,
मुझको सेंकना हैं उन पर नरम हाथों की दिलफरेब लकीरों को ।
मेरे मन का तार मेरी नाभि से नहीं जुड़ता,
वो जुड़ता है मेरे पैर के तलवे के तिल से कहीं ।
मेरे जिस्म की रंगों से लहू निकालो ज़रा,
उनमें ग़मज़दा हारों का बयां बहने दो ।
मुझको बस मेरे ही जैसा नहीं रहना,
मेरे अंदर हज़ार- हा किरदारों को रहने दो
मुझको मेरे ही भीतर तकसीम हो जाना है
मुझको इस गंध की स्याही से हरफ़ बनाने दो।
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2-शिव सावन हो तुम
सुरभि डागर
हर श्वास- श्वास में शिव समाया
शिव संग सावन झूम- झूमके आया
मैं
इठलाती बलखाती -सी
शिव का जाप लगाती ,
कर सोलह शृंगार
शिव से मिलने जाती ।
हाथों में पूजा की थाली
नयनों में दर्शन की तीव्र अभिलाषा
बन त्रिलोकी नाथ विराजे
बिल्वपत्र में तीन
देव त्रिलोक
दर्शाते
कर शृगार
शिव और भी
मनमोहक हो जाते।
लगा त्रिपुण्ड बैठे ।
भोलेनाथ !
मेरे घर क्यों नहीं आते ।
आज चलो हठ कर बैठी
अशोकसुंदरी- सी मैं भी तेरी बेटी हूँ
थाम लिया हाथ तुम्हीं ने
भाव से तुम्हें मनाती हूँ
बीत रहा है सावन
ले कोथली बाबा बेटी के
घर आता है।
प्रेमपूर्ण है निमंत्रण
तुम्हें बुलाने को जी
चाहता है
‘नन्दी
संग बाबा
द्वार पर तुम मेरे आना’
‘आ गया
बेटी बाबा तेरा
ऐसे टेर लगाना।’