1-पूनम चन्द्रा ‘मनु’
"आओ
पलकों को सज़दे में झुका कर.............
रूह तक पहुँचने वाली
आसमाँ से बरसने वाली .............
नूर की नदी में ख़ुद को उतार लें
आओ .............
दुआएँ माँगें कि
सबकी दुआएँ क़ुबूल हों .............
ख़वाब .............
हक़ीक़त की शक़्ल पहने .............
ख्य़ाल .............
परिंदे की तरह आस्माँ का सफ़र तय करें
आफताब .............
हर धुन्ध को चीर कर
हमारी मंज़िल को रु ब रु कर दे
वक़्त .............
बस यही तो है .............
जो अपने साथ चलता है
आज वक़्त............. फिर से “जवाँ” हुआ
है अब कोई ख़वाब नामुमकिन नहीं हम सबको .............
“तारीख” का
बदलना मुबारक हो
ये
“नया साल” मुबारक
हो
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2-परिवर्तन-सुनीता पाहूजा
नए कैलेण्डर की जगह बनाने को
पुराना कैलंडर तो हटाना होगा
नए पलों का स्वागत करने को
बीते पलों को तो भुलाना होगा।
समय तो समय है रुकता नहीं पलभर
हमें भी हर कदम आगे बढाना होगा
पूरे किए कामों का जश्न तो ठीक है
नई मंज़िलों की ओर भी रास्ता बनाना होगा।
ख्वाहिशें कुछ पूरी हुईं कुछ रहीं अधूरी,
फिर भी जज़्बा नई उम्मीदों का बनाए रखना होगा
जो मिल न सका वो भ्रम ही था,
जो पा चुके उसके मोह से खुद को बचाना होगा।
अज्ञान का हो, भय का, या फिर निराशा का
हर अंधकार को जीवन से मिटाना होगा
वह जो हमारी पहचान हमीं से करवा सके
ऐसे प्रकाश का कोई दीपक तो जलाना होगा ।
खुशियाँ पाकर तो खुश होते ही रहे हैं
किसी रोते हुए को हँसाकर दिखाना होगा
खुश्बू से सबका जीवन महकाते रहें हरदम
अपने जीवन को ऐसा पुष्प बनाना होगा ।
दोस्त कई नए बने भी कई बिछड़े भी
इस बार खुद को भी दोस्त बनाना होगा
अवसाद देने वाले पल, सब पतझड़ ही थे
अब तो नई बहारों से जीवन सजाना होगा।
किसको कितना हुआ नफ़ा-नुकसान न सोचें हम
बस रिश्तों को
ख़ूबसूरती से निभाना होगा
यह ज़िंदगी है,
ज़िंदादिली से जिएँगे हरदम
इसे हिसाब की किताब बनने से बचाना होगा ।
बीते हुए कल में जीना नहीं है
आने वाले कल की नहीं करनी चिंता
आज के हर पल को ‘अब’ में
जीकर
उसे बेहतर से बेहतरीन बनाना होगा।
ख्वाबों से बचना नहीं, डरना भी नहीं है
जीवन के हर पहलू के सौंदर्य को बढ़ाना होगा
ठोस ज़मीं पर रहते हुए, नए क्षितिज को छूकर
हर ख्वाब को
हकीकत में बदलना होगा।
जिस परिवेश के हम आदि हो चुके हैं
वहाँ शांति और आराम तो मिलते ही हैं
नववर्ष में लेकिन नवीनता चाहते हैं तो
भीतर-बाहर परिवर्तन तो लाना होगा।
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3-कुंडलिया छंद:-अनिता मण्डा
नव किरणें उजियार ले, फैलीं नभ के भाल।
अभिलाषाएँ दे नवल, बीत गया ये साल।।
बीत गया ये साल, कई पाई सौगातें
पीछे दी है छोड़, मिली कटु-मीठी बातें।।
मन में लेकर जोश, जीत जाएँगे ये भव।
आओ सब मिल साथ, स्वप्न साकार
करें नव।।
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4-मंजु
गुप्ता , वाशी ,
नवी मुम्बई
(फोन 09833960213)
सतरंगा नववर्ष
सतरंगा नववर्ष जग में फिर से आ गया
उत्साह , उमंग का साज ले फिर से आ गया
प्रेम की बाँसुरी बजा गले लगाने आ गया
दरकते रिश्तों की गाँठे खोलने आ गया
गम , दुःख के आँसू पोंछ ख़ुशी
देने आ गया
सतरंगा नववर्ष जग में फिर से आ गया ।
खुदगर्ज मानव अपनी मनमानी है करे
वनों को काट - काट के प्रलय लीला है करे
धरा -आकाश प्रदूषण से फिर विषैले हुए
प्रदूषित मौसम चक्र बदल के बेमौसम हुए
वैदिक रस्मों से सन्तुलन देने आ गया
सतरंगा नववर्ष जग में फिर आ गया ।
करना जगतवासियों की आशाएँ पूरी
भूखा सोए न जन देना दो वक्त रोटी
सुप्त चेतनाओं में जागे नारी सम्मान
बन बदली बरसना तुम ! किसानों के जहान
सुख , समृद्धि का सूरज बन के फिर
से आ गया
सतरंगा नववर्ष जग में फिर से आ गया ।
दीवारों से हठा कलैण्डर सजा साल नया
ईद , दिवाली , होली फिर तिथियों में लाया
लेखा - जोखा कर लें पिछले कामों का
क्या खोया - पाया हमने करें अधूरे
काम
अश्वमेघ रथ पे चढ़ ' मंजु ' फिर से आ गया
सतरंगा नववर्ष जग में फिर से आ गया ।
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