पथ के साथी

Friday, December 30, 2016

700

डा०कविता भट्ट

आजीवन पिया को समर्थन लिखूँगी
प्रेम को अपना समर्पण लिखूँगी l

निज आलिंगन से जिसने जीवन सँवारा
प्रेम से तृप्त करके अतृप्त मन को दुलारा l

उसे आशाओं स्वप्नों का दर्पण लिखूँगी
प्रेम को अपना समर्पण लिखूँगी l

प्रणय निवेदन उसका था वो हमारा
न मुखर वासना थी; बस प्रेम प्यारा l

उससे जीवन उजियार हर क्षण लिखूँगी
प्रेम को अपना समर्पण लिखूँगी l

न दिशा थी, न दशा थी जब संघर्ष हारा
विकट-संकट से उसने हमको उस पल उबारा l

उसमें अपनी श्रद्धा का कण-कण लिखूँगी
प्रेम को अपना समर्पण लिखूँगी l

कौन कहता है जग में प्रेम जल है खारा
मुझे तो जग में सदा प्रेम ने ही उबारा

इस जल पे जीवन ये अर्पण लिखूँगी
प्रेम को अपना समर्पण लिखूँगी l
-0-
दर्शन शास्त्र विभाग
हे०न० ब० गढ़वाल विश्वविद्यालय
श्रीनगर गढ़वाल उत्तराखंड






Wednesday, December 21, 2016

699

 1-माँ से कुछ बातें
सत्या शर्मा कीर्ति’  ( राँची)
सत्या शर्मा कीर्ति
माँ कहनी है तुमसे कुछ अनकही- सी बातें
कई बार चाहा कह दूँ  तुमसे हर वो बात
पर कहाँ था वक्त तुम्हारे पास
तुम भागती रही सफलता और
शोहरत के पीछे
और मैं अकेली ही उलझती रही
तुम्हें समझने में ,
जाने कितनी रातें तुम्हें पकड़ कर
सोने के लिए मचली हूँ मैं
जाने कितने गीले तकिये गवाह हैं
मेरे अकेलेपन का
जानें कितनी अँधेरी डरावनी रातें
सिर्फ तुम्हारे मौजूदगी के एहसास से
लिपट कर गुज़ारी  हैं

बहुत ढूँढा तुम्हें माँ
जब बचपन बदल रहा था यौवन में
समझनी थी कितनी अनसुलझी -सी बातें पर ...
नारी स्वतंत्रता की पथगामिनी तुम
देती रही भाषण , लिखती रही लेख
उन्ही लेखों का प्रश्न चिह्न (?)थी मैं
माँ तुम्हारे ही कोख से जन्मी
तुम्हारी पुचकार से दूर
तुम्हारी ममतामयी गोद से महरू
थपकियों के एहसास से परे
माँ द्वारा दी जाने ली सीख से जुदा
ढूँढती रही कार्टूनों और नेट की दुनिया में 
माँ  वाला प्यार...
अभी भी कहनी है तुमसे कुछ बातें ...
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2-कलम
 डॉ मधु त्रिवेदी  ( आगरा)
सूरज की पहली किरण के साथ
कुछ कहने को  कुछ लिखने को
लालायित मैं उत्साहित हो उठी
    
पर कलम चुप थी
कुछ दुनियादारी के बोझ तले मैं
कुछ अप्रकट अहसासों में दबी मैं
अशांत भावनाओं के वेगों में घटी
      
पर कलम चुप थी
कुछ खोज रही थी शून्य में ताकते
जा टिकी दृष्टि पास पड़े अखबार पे
शुरू स्याही बद्ध तथ्यों का मंथन
     
पर कलम चुप थी
नेह -भरी कोमल यादों का चिंतन
अपना -सा कहने बाले शब्दों का जादू
शुरू उद्वेगों का मचलकर उठना
       
पर कलम चुप थी
शब्द भी सिहरकर सिसकने को बेताब
आँसू रोकर कहने को हाल -बेहाल
भावना के वेग में अज्ञात दोहरा पर
         
पर कलम चुप थी

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Sunday, December 18, 2016

698

1-जल रहा अलाव- शशि पाधा ( वर्जिनिया, यू एस )

जल रहा अलाव आज
लोग भी होंगे वहीं
मन की पीरभटकनें
झोंकते होंगे वहीं

कहीं कोई सुना रहा
विषाद की व्यथा कथा
कोई काँधे हाथ धर
निभा रहा चिर प्रथा

उलझनों की गाँठ सब
खोलते होंगे वहीं

गगन में जो चाँद था
कल जरा घट जाएगा
कुछ दिनों की बात है
आएगामुस्काएगा

एक भी तारा दिखे तो
और भी होंगे वहीं ।
दिवस भर की विषमता
ओढ़ कोई सोता नहीं
अश्रुओं का भार कोई
रात भर ढोता नहीं

पलक धीर हो बँधा
स्वप्न भी होंगे वही |
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2-डॉ०पूर्णिमा राय

1
स्वप्न सलोने मन में लेकर,दिलबर तेरा प्यार लिखा।
यौवन तेरे नाम किया है ,तन-मन का शृंगार लिखा।।

साँसे आती-जाती कहती,इक पल दूर न जाना अब;
मिला सुकूँ इस रुह को तब ही,जब तेरा अधिकार लिखा।।

मन की बस्ती सूनी-सूनी,रंग प्यार के सदा भरो;
हमने प्रेम भाव से इतना ,मनभावन संसार लिखा।।

अरमानों का खून हुआ है,देखी हालत दुनिया की;
मानवता के हित की खातिर ,प्रीत भरा उद्गार लिखा।।

बहकी-बहकी फिज़ा लगे है ,प्रिय की पावन खुश्बू  से
मृत काया में होता स्पंदन ,प्राणों का संचार लिखा।।

नारी का सम्मान करें सब,धैर्य बढ़ाएँ उनका जो;
ऐसे पुरुष महान जगत में,उनका ही सत्कार लिखा।

मुख चंदा -सा उज्ज्वल दिखता,कर्म करे सब पुरुषों के;
नारी ताकत के ऊपर ही,कवियों ने हुंकार लिखा।।

सुन्दर नखशिख रूप नारी का,चंचल चितवन मन भाए;
प्रेम, स्नेह की मूरत जननी, नारी का संसार लिखा।।
2
हमसफर के साथ जीवन में बहारें आ रहीं।
मुश्किलों के दौर में दुख की घटाएँ भा रहीं।।

प्यार की पीड़ा सही औ फिर अधूरे जो रहे;
आस में ये प्रीत उनकी जीत नगमें गा रहीं।।

जिंदगी की भीड़ में साथी मिले जो प्यार दे;
प्यार पाकर प्यार से फिर नफरतें भी जा रहीं।।

वासना की दौड़ अंधी डस रही रिश्ते सभी ;
पाक मन की भावना नजदीक सबको ला रहीं।

पूर्णिमाकी आरजू ये साथ जन्मों तक रहे;
गुल नए गुलशन खिले औ' रोशनी चहुँ छा रहीं।।
3
न हिन्दू सिक्ख ईसाई न ही शैतान बनना है।
गिरा कर वैर की दीवार बस इन्सान बनना है।।

दिखे रोता अगर कोई तो'उसके पोंछ कर आँसू
खुदा के नूर के जैसी हमें मुस्कान बनना है।।

ख़ुशी रूठी है' जिन लोगों से' उनको हौसला देकर ;
 सिसकते आंसुओं का खो चुका अरमान बनना है।

बहाकर प्रेम की धारा समर्पण के इरादों से ;
दिलों को जीत  ले ऐसा हमे सम्मान बनना है।।

बुराई देखते हैं जो उन्हें भी खुशबुएँ देकर ;
सजा दे पूर्णिमाजो घर वही गुणवान बनना है।।
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Monday, December 12, 2016

697



यादें
प्रियंका गुप्ता
1
यादें
कभी यूँ भी होती हैं
मानो,
किसी सर्द रात में
बर्फ़ हो रहे बदन पर
कोई चुपके से
एक गर्म लिहाफ़ ओढ़ा जाए ।
2
यादें
कभी दर्द होती हैं
और कभी
किसी ताज़ा घाव पर
रखा कोई ठंडा मरहम ।
3
यादें
मानो,
कभी जल्दबाज़ी में
सर्र से छूटती कोई ट्रेन
भाग के पकड़ो
वरना फिर
जाने कब पकड़ पाएँ ?
4
यादें-
कभी सर्दी में 
बदन पर पड़ा बर्फ़ीला पानी;
या फिर
किसी हड़बड़ी में
जल गई उँगली पर
उगा एक फफोला;
तकलीफ तो होती है-
है न ?
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Saturday, December 10, 2016

696



1-मंजूषा मन
1
कैसे बोलो सौंप दे, जब है मन पर शाप ।
मन से मन को जोड़कर, दुख पाएँगे आप
2
यादों से मिटती नहीं, दर्द भरी थी रात।
हमको तो बस है मिली, आँसू की सौगात।।
3
कोई अब रखता नहीं, मन दरवाजे दीप।
आस लगा जिनसे चले, नहीं समीप।।
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2-श्वेता राय
कह न पाऊँ बात मन की, दिल बड़ा बेचैन है।
याद तेरे साथ की प्रिय!, छीनती अब चैन है।।
पास थे तुम जब लगे सब, है ख़ुशी मेरे लि
मैं बनूँ चंदा कभी तो, चाँदनी तेरे लि।।

दिन लगा के पंख उड़ता, रात कटती थी नयन।
आस में तेरे मिलन के, जागती थी मैं मगन।।
सोचती थी क्या कहूँगी, जब मिलोगे तुम सजन।
भूल सारी बात जाती, देखती तुमको भवन।।

कर रहे वापस मुझे तुम, दिल लिया जो प्यार से।
आस से विश्वास से औ, प्रीत की मनुहार से।।
खुश रहोगे यदि सदा तुम, याद मत करना मुझे।
भूल कर भी दर्द कोई, अब नही सहना मुझे।।
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3-लीक से हट कर
डॉ मधु त्रिवेदी
कुछ अलग लिखा जा
लीक से हट कुछ किया जा
विषमता में समानता लाकर
हर व्यक्ति को खुशहाल किया जा
कर रहे है जो देश को खोखला
उनका काम तमाम किया जा
भारत में ही रहते है
यहीं फलते फूलते
असहिष्णुता जैसे बयान देते है
उनको देश से बाहर किया जा
ऊपर से नीचे तक जो गन्दगी
उसको साफ किया जा
सत्ताधारियों के बीच साक्षरता
स्तर को बढ़ाया जा
राजनीति के उच्च पदों को
पढे लिखों से
गौरवान्वित किया जा
सब लोगों को मिलें नौकरी
ऐसा कुछ किया जा
बड़े बूढ़े हो समृद्ध
मिलें बच्चों को छत्र छाया
ऐसे संस्कार दिये जाएँ
रहे कोई भूखा- नंगा
दो वक्त की रोटी मिले सबको
ऐसा इन्तजाम किया जा
चाँद तारों से करे बातें
ऐसा काम किया जा
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