पथ के साथी

Tuesday, September 6, 2016

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1-ज़िन्दगी फिर भी नमकीन है
- मंजूषा मन

दुःख मिला जो हमें
अंतहीन है,
ज़िन्दगी फिर भी नमकीन है।
जीवन लगता अब मशीन है,
ज़िन्दगी फिर भी नमकीन है।

र्जर हुई है
मन की हर दीवार,
टूट ग हैं अब सारे द्वार,
छाया है हर ओर
घनघोर अँधेरा,
कहीं दिखाई न देता है
कोई सवेरा,
दिल का माहौल ग़मगीन है
ज़िन्दगी फिर भी नमकीन है।

मंज़िल कहाँ है, ये नहीं पता
अपने भी रहते है
सदा हमसे खफा,
तरसे हैं हम
इक  इक ख़ुशी के लिए,
पाया भी क्या है
ज़िन्दगी के लिए,
हासिल तेरह न पाया तीन है
ज़िन्दगी फिर भी नमकीन है
छूटा जो हाथो से
ग़म न किया,
जीवन का हर पल
हँ- हँसकर जिया
सहे दर्द
न कभी आँसू बहा
नहीं कभी
ये कदम डगमगा
निकाला कोई मेख न कोई मीन है
ज़िन्दगी फिर भी नमकीन है
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2-औरों की खुशियों में (सार या ललित छंद )
सुनीता काम्बोज

एक बार गर गई, लौटकर,आती नहीं जवानी
माटी में माटी मिल जाए,
फिर पानी में पानी ।
सबको इक दिन जाना होगा,जो दुनिया में आया
हँसकर रोकर
हर मानव ने,जीवन का सुर गाया ।
ज्ञानी है कोई इस जग में, है कोई पाखण्डी
कोई सरल बड़ा ही मिलता,कोई बड़ा घमण्डी ।
इस दुनिया में कुछ लोगों को ,अपना आप सुहाता
जो उनकी अच्छाई गिनता ,केवल वो ही भाता ।
रंग- बिरंगे सजे खिलौने ,दुनिया लगती मेला
कोई जीता भीड़- भाड़ में,कोई रहा अकेला ।
सारा जीवन धन के पीछे ,फिरते हैं बौराए
जितना मिलता कम पड़ता है, हाय हाय! चिल्लाए ।
औरों की खुशियों में खुशियाँ , जिसने ढूँढी ,पाई
रहता नहीं कभी वह प्यासा, मिट जाती तन्हाई ।
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