अनिता ललित
1
आखर-आखर में ढलूँ, भर दूँ उनमें प्रान
भर दूँ उनमें प्रान, चुनूँ हर पथ के काँटे
सुमन-सुवासित भाव, व्यथा हर मन की बाँटे
जीवन का उल्लास, मिले इन चरणों में माँ
रख दो सिर पर हाथ, तृप्त मन कर दो, हे माँ !!
2
अधर-अधर मुस्का दिया, मन पुलकित है आज
ताज बसंती पहनकर, आए हैं ऋतुराज
आए हैं ऋतुराज, धरा भी है हर्षाई
पीली सरसों संग, हुई है आज सगाई
थिरक रहा है गगन, हवा लहराती चूनर
दिल में उठे तरंग, फूल हुए कोमल अधर।।
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