पथ के साथी

Saturday, September 1, 2018

642-कृष्णा वर्मा


कृष्णा वर्मा ( कैनेडा )
1
अक्सर ख़ामोशियाँ
लिख जाती हैं
सरसरे  तरीके से
गहरी कविताएँ।
2
जलती है रोज़ वह भी
चूल्हे की लकड़ियों-सी
वे बुझकर राख हो जाती हैं
और वह सुलगती रहती है।
3
तू क्या गया
मैं तो मरों से
बदतर हो गई।
4
चाँद अकेला नहीं करता
राहों को रौशन
उसकी दमक में
शामिल होती हैं
अनगिन तारों की लौ।
5
अपने ही जाए
छीन कर ले गए
बुढ़ापे का सहारा।
6
ऐसा नहीं कि
उठाते नहीं लोग
तुम्हें भले नहीं
पर उठाते हैं
तुम्हारा फ़ायदा।
7
भाप बनकर
उड़ता जा रहा है प्रेम
जबसे
अहं का सूरज
खुश्क़ करने लगा है
रिश्तों का समंदर।
8
उन नींदों का
कैसे करूँ
शुक्रिया अदा
जिन्होंने वार दिया
अपने हिस्से का सुकून
मेरे ख़्यालों की
सूरत गढ़ने में।
9
कितना गिरोगे
दोस्त कहकर
भोंक देते हो ख़ंजर
गले मिल के।
10
तुम्हारे प्रेम के लिए
मैंने ख़ुद को किया पार
और तुम
सहज चल दिए
बेख़बर
मुझे छोड़कर
लहरों की ज़मीं पर।
11
चुपचाप पड़ी थी
अकेले में आँखों को मूँदे
फिर कौन कर रहा था
गुफ्तगू   मुसलसल।
12
झाड़के उदासियाँ
साध स्वयं को
उदासियों का नहीं
कोई एतबार
कब
बना दें किसी को बुद्ध।
13
ग़ज़ब का हुनर है
पुरानी यादों में
झट से थामकर
रख देती हैं
चलती हुई ज़िंदगी।
14
पाएँ तो कैसे
गिरवी पड़ा  है
सुकून
कर्तव्यों के
महाजन के पास।
15
यूँ तो सच है कि
वक़्त ठहरता नहीं
करके देखिए कभी
इंतज़ार
करोगे शिकायत वक़्त से
कि ठहर क्यों गया।
16
गाहे बगाहे जब चाहे
चली आती हैं यादें
जानती हैं रोकेगा कौन
दिल की चौखट पर
कब होते हैं दरवाज़े।
17
न अधर खुले
न प्रीत झरी
न निगाहें मिलीं
न इकरार हुआ
मख़्मली ख़्यालों में
धड़का मेरी
पलकों का दिल
जब तेरे होंठों ने
मेरी मुँदी
आँखों को छुआ।
18
मत सोच कि
छुपा लेगा तू उससे कुछ
वह तो
वह भी समझ लेता है
जो
तूने कभी कहा भी नहीं।
19
उम्र के सफ़र मे
महकती रहीं ख़्वाहिशें
ग़ज़ब की नेमत थी
तेरी मौजूदगी की तासीर।
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क्षणिकाएँ