हाँफता हुआ बच्चा
-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
सुबह-सुबह !
हाँफता हुआ बच्चा
जा रहा स्कूल
पीठ पर लादे
बस्ता किताबों का
गले में झूलती
पानी –भरी बोतल
थके हुए कदम
हलक़ सूखा हुआ
थका हुआ बच्चा
चढ़ रहा
स्कूल की सीढ़ियाँ
आगे खड़ा है –
मुँह बाए
बाघ-सा क्लास रूम !
क्लास रूम में आएँगे
चश्मे के भीतर से घूरते टीचर!
दोपहर हो गई-
छुट्टी की घण्टी बजी
उतर रहा है बच्चा
स्कूल की सीढ़ियाँ-
खट्ट -खट्ट खट्ट- खट्ट
पीठ पर लादे
भारी बस्ता किताबों का
होमवर्क का बोझ
जा रहा बच्चा घर की तरफ
फर्राटे भरता
फूल हुए पाँव
सामने है घर
आँचल की छाया
पथ के साथी
Wednesday, October 17, 2007
कुछ कीजिए
कुछ कीजिए
ईमान हुआ बेघर, कुछ कीजिए ।
भटकता है दर–बदर ,कुछ कीजिए ।
फ़रेब के सैलाब से न बच सके
परेशान है रहबर ,कुछ कीजिए ।
रहनुमा बनकर जो कल गले मिले।
वे लिये आज ख़ज़र,कुछ कीजिए ।
बेहया हो गया मौसम बहार का ।
मुश्किल है बहुत सफ़र,कुछ कीजिए ।
ख़ुदा! तू भी परेशान ही होगा
तेरा ख़ौफ़ बेअसर ,कुछ कीजिए ।
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
ईमान हुआ बेघर, कुछ कीजिए ।
भटकता है दर–बदर ,कुछ कीजिए ।
फ़रेब के सैलाब से न बच सके
परेशान है रहबर ,कुछ कीजिए ।
रहनुमा बनकर जो कल गले मिले।
वे लिये आज ख़ज़र,कुछ कीजिए ।
बेहया हो गया मौसम बहार का ।
मुश्किल है बहुत सफ़र,कुछ कीजिए ।
ख़ुदा! तू भी परेशान ही होगा
तेरा ख़ौफ़ बेअसर ,कुछ कीजिए ।
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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