1-अँधेरे
में-शशि पाधा
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अँधेरे में टटोलती हूँ
बाट जोहती आँखें
मुट्ठी में दबाए
शगुन
सिर पर धरे हाथ का
कोमल अहसास
सुबह के भजन
संध्या की
आरतियाँ
रेडियो पर लोकगीतों की
मीठी धुन
मिट्टी की ठंडी
सुराही
दरी और चादर का
बिछौना
इमली, अम्बियाँ
चूर्ण की गोलियाँ
खो-खो , कीकली
रिब्बन परांदे
गुड़ियाँ –पटोले --
फिर से टटोलती हूँ
निर्मल, स्फटिक सा
अपनापन
कुछ हाथ नहीं आता
वक्त निगल गया
या
उनके साथ सब चला गया
जो खो गए किसी
गहन अँधेरे में ।
-0-18 जनवरी
, 2020
-0-
2-बस तुम
पुकार लेना /सत्या शर्मा ' कीर्ति '
हाँ , आऊँगी लौटकर
बस तुम
पुकार लेना मुझको
जब बरस रही हो यादे
कुहासे संग किसी अँधेरी
सर्द रात में
और वह ठंडा एहसास जब
कँपकँपाए
तुम्हारे वजूद को
पुकार लेना मुझको
जब संघर्षों की धूप
झुलसाने लगे तुम्हारे आत्मविश्वास को
उग आएँ फफोले
तुम्हारे थकते पाँवों में
जब मन की पीड़ा हो
अनकही
हाँ , पुकार लेना मुझको
जब उम्र की चादर होने लगे छोटी
जब आँखों के सपने
कहीं हो जाएँ गुम
जब हाथो की पकड़
होने लगे ढीली
जब सम्बन्धों की डोर
चटकने से लगें
हाँ ,
पुकार लेना मुझको
मैं आऊँगी लौटकर
हाँ, बस एक बार पुकार लेना मुझको।।