पथ के साथी

Friday, May 4, 2018

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रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
 1-प्रतिध्वनित

प्रतिध्वनित
पल -प्रतिपल
हूक तेरी घाटियों में
टेरती मुझको।
और सब सुधियाँ
मधुरता पान करके
सुनसान पथ में
हेरती मुझको।
रोज़ खुलते
खोखले सम्बन्ध
मेरे सामने,
कौन आता
 हाथ मेरा थामने!
बस तुम्हीं ,
जो हर घड़ी
सोचते मुझको;
बस तुम्हीं
अनुगूँज बन जो
खोजते मुझको।
मैं मिलूँगा एक दिन
फिर से तुम्हें
मैं खिलूँगा
उर उपवन में तुम्हारे
और खुशबू बन
सरस प्राणों को करूँगा
आत्मा बन मुझे
रहना तुम्हीं में है
मैं तुम्हारे प्राण का हिस्सा
दूर रहकर भी
उजाले  द्वार पर
तेरे धरूँगा।
[4 मई 2018]
-0-
मुक्तक
इस तरह कसकर तुम्हें सीने से लगा लूँ।
कि तेरे सभी दुख मैं सीने में छुपा लूँ ।
तेरे कोमल पाँवों में कभी कुछ न चुभे 
आगे तुमसे चलूँ , मैं सब शूल हटा लूँ ।
-०-
1-निशान

शिलाओं ने जल को
जीभर पटका
बार- बार पछाड़ा
कई बार लताड़ा,
वह खिलखिलाया
तभी तो उनको
चूर -चूर कर पाया
टूटा नहीं जल
शिलाओं पर अपने
निशान छोड़ आया।
-0-
2-थिरकन

घर के हर कोने में
थिरकती ,नाचती
गाती ,गुनगुनाती
उछलती थी गुड़िया।
स्कूल क्या गई
ऐसा पाठ पढ़ाया
अनुशासन सिखाया
सब भूल गई गुड़िया
दूर कहीं
उमंग खो गईं।
-0-
3-पत्थर

बनों पत्थर
देखो न छुपकर
कि कौन क्या कर रहा
फूल को न मारो
अगर गिर गए
तो टूट  जाओगे
फूल का क्या
बिखर भी गया तो
सुरभि लुटाएगा,
बीज बन बिखरा तो
फूल बन जाएगा
और पत्थर?
न बीज बनता
न खुशबू लुटाता
बस टूट- टूट जाता।
-0-
4-पानी

पानी रोता नहीं,
तुम्हारी आँखों में छलका
बहुत कुछ कह गया
अधरों पर उतरा
रस बन बह गया
बन गया लाज
सब कुछ सह गया
बना जो उमंग,
 तो माना नहीं वह
हृदय में तुम्हारे
बना प्यार निर्मल
और वहीं रह गया।
-0-(मई 3, 2018)
[ चित्र -गूगल  से साभार ]