पथ के साथी

Friday, August 3, 2018

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1-गुंजन अग्रवाल (अनहद)

जंगल भी हैरान है, देख शहर की चाल।
घूम रहे हैं भेड़िए,पहन मनुज की खाल ।
पहन मनुज की खाल,करे नर, नर का भक्षण ।
पशुओं से भी नीच,हुए हैं वहसी लक्षण ।
*अनहद* ये इंसान, घृणा के करता दंगल।
सौ प्रतिशत है सत्य,शहर से सुंदर जंगल।
-०-
2- कौन हो तुम ?


कौन हो तुम ?
हे ! पथिक अपरिचित ,
गुनगुनाते -
किसकी स्मृतियों में गुमसुम ,
वातायनों से देखती -
नित ही तुम्हारा आना-जाना 
लट ललाट पर  बंजारे -सा बाना ,
न जाने किस क्षण भा गए -
हो बहुत दूर पर करीब आ गए ,
हृदय की वीथियों में उठ रहा शोर 
निर्जन कानन में  -
नाचने लगा है अचानक कोई मोर ,
तुम्हारा आना-जाना , मेरा निहारना 
यूँ कि जैसे तटिनी के दो छोर,
गाँव  अलग-अलग है दोनों ओर ,
बीच का  दरिया घड़ियालों भरी ,
न कोई सेतु -न उड़नचटाई, दरी ,
दृगों से ख्वाब सलोने कई टूट गिरे जा
उड़ चली बात कि हो गया नीर खारा
इतने करीबी हुए तुम अपरिचित
फिर भी परस्पर निहारना -
हुमसकर रह जाना हुम्म-हुम्म ,
और सवालिया इशारे -
एकदूजे पर उछालना कि -
कौन  हो तुम -
अरे ! कह भी दो कभी-कौन हो तुम ?

-0-
3-तुम नहीं तो क्या - पूनम सैनी

तुम नहीं तो क्या टूट गई डाली
तुम नहीं हो तो क्या नहीं रही पींग
तुम नहीं हो तो क्या डूब गयी कश्ती
तुम नहीं हो तो क्या उड़ती नहीं तितली
तुम नहीं हो तो क्या पकती नहीं अंबी
तुम नहीं हो तो क्या बनती नहीं गुजिया
तुम नहीं हो तो क्या आते नहीं नए कपडे
तुम नहीं हो तो क्या पड़ती नहीं माँ की डाँट
तुम नहीं हो तो क्या खामोश है लोरी
तुम नहीं हो तो क्या टूटी नहीं प्याली
तुम नहीं हो तो क्या खाती नहीं मैं  चोट
तुम नहीं हो तो क्या आया नहीं सावन
तुम नहीं हो तो क्या छलकी नहीं बारिश
तुम नहीं हो तो क्या टूटा नहीं तारा
तुम नहीं हो तो क्या  टँगा नहीं बस्ता
तुम नहीं हो तो क्या बजी नहीं घंटी
तुम नहीं हो तो क्या बिकी नहीं कुल्फी
तुम नहीं हो तो क्या नाचा नहीं बंदर
तुम नहीं हो तो क्या उड़ते नहीं गुब्बारे
तुम नहीं हो तो क्या ऊब गया आँगन
तुम नहीं हो तो क्या रूठ गया जीवन
धड़कता है दिल भी, चलती हैं साँसें
और बहती है यादें नज़रों के किनारे कहीं
सब कुछ तो है वैसा ही
प्यारा सा, न्यारा सा
ऐ मेरे प्यारे बचपन!
इक तू ही नहीं...
-0-
648 / 2 दयालसिंह कॉलोनी, नजदीक अलमारी फैक्ट्री, सिसाय रोड़, हाँसी