पति-महिमा
- रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
पति परमेश्वर रहा नहीं ,
पति बना पतंग ।
दिन भर घूमे गली-गली,
बनकर मस्त मलंग ॥
घर में आटा दाल नहीं,
नहीं गैस नहीं तेल ।
पति चार सौ बीस हैं ,
घर को कर दिया फ़ेल ॥
सुबह घर से निकल पड़े,
लौटे हो गई शाम ।
हम घर में घु्टते रहे
छीन लिया आराम ॥
खाना अच्छा बना नहीं ,
यही शिकायत रोज़ ।
पत्नी तपे रसोई में ,
करें पति जी मौज़ ।
एक बात सबसे कहूँ ,
सुनलो देकर ध्यान ।
पति परमेश्वर रहा नहीं ,
पति बना शैतान ॥
पति दर्द समझे नहीं ,
पति कोढ़ में खाज ।
पत्नी का घर-बार है ,
फिर भी पति का राज॥
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इस कविता का अगला भाग क्या हो सकता है ? पढ़ना हो तो मेरी बहिन हरदीप की कविता पढ़िए, इस लिंक पर -http://shabdonkaujala.blogspot.com/2010/09/blog-post_30.html
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