1-चाँद
कितना कुछ लिखा सबने
कवियों ने शाइरों ने
चमचमाते चाँद पर
और खिली चाँदनी पर
पर ...मैं नही लिखना चाहती
मैं महसूस करना चाहती हूँ
उस चाँदनी
को
जो जगाती है प्रेम
और कभी हवा देती है
विरह की आग को
देखती हूँ कभी
चाँद के गोल मुखड़े पर
किसी माँ के
जिगर के टुकड़े का चेहरा
कभी देखती हूँ
अपनी यादों को
शुभ्र धवल चाँदनी
में
नहलाती,
चंदा से अकेले में बतियाती
कोई प्रेमिका
और कभी चाँद
में
किसीको तलाशता
कोई पागल प्रेमी
और अवनि से
अंबर तक फैली
इस ज्योत्स्ना को
अपनी आँखों
से उतार लेना चाहती हूँ
अपने दिल में।
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2-प्यार में
लड़कियाँ जब होती हैं प्यार में
ढूँढा करती हैं बहाने,
छत पर या
घर से बाहर जाने के
करती हैं सैकड़ों जतन
लगाती है जुगत कई
एक झलक भर पाने को
नहीं करती
फिर वो परवाह
किसी भी चीज़ की
किसी के बोलने
या ज़माने की
तकती हैं चाँद ,
गिनती हैं तारे ,
पलकों के पीछे सजाती
अरमान ढेर सारे
छिप-छिपके आईने में
निहारती हैं अपने आपको
बार-बार
हो जाना चाहती हैं आश्वस्त
कि सुंदर ही लग रही
सीख लेना चाहती हैं
हर वो हुनर और कलाकारी
जिससे बिखेर पाएँ अपनी जादूगरी
जीत लें किसीका दिल
बदल लेती हैं अपनी कुछ आदतें
अपनी पसंद नापसंद
केवल कुछ बातें जानकर
मानने लगती हैं
जनम जनम का बंधन
और कर देती है न्योछावर सब कुछ
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3-टुकड़े टुकड़े जन्म
जब जनमती है कोई स्त्री देह
पहना दिया जाता है
झिंगोला, उसे बेटी नाम का
हो जाती है वो बेटी ;
धीरे से जैसे वो बढ़ती जाती है
बता दी जाती हैं,उसे उसकी
सारी मर्यादाएँ,
उससे बार -बार यह
कहा जाता है-
"तुम बेटी हो"
"तुम बेटी हो"
वो भूल जाती है,
जन्म किस रूप में लिया था ;
उसे केवल याद रहती हैं
वर्जनाएँ , मर्यादाएँ
और ये कि
वह बेटी है ;
फिर जन्म लेती है पत्नी
और भूलती जाती है अपना
पिछला जन्म,
उसे भूलना ही होता है
क्योंकि,
नहीं
जी सकती
वह दोनों जनम एक साथ
अब वो पत्नी है ;
सब कुछ बदल गया,
नहीं
बदली मर्यादाएँ
अलबत्ता ,कुछ नई
और जुड़ गई
वो अपूर्ण है
पूर्णता पाने के लिए
लेना होगा उसे
एक और जन्म ;
पुनर्जन्म हुआ
और जनमते ही
चटाई जाती है घुट्टी
तुम माँ हो,
तुम पूर्ण हो,
तुम महान हो ,
पूर्णता , महानता के लबादे तले
दब जाती है
फिर उसके पिछले
जनम की इच्छाएँ
आकांक्षाएँ
बड़ी बड़ी उपाधियों की
ताजपोशी से
तुपे कानों के साथ
बैठा दिया जाता है
उसे देवताओं
के समकक्ष
किया जाता है जयकारा
जयघोष उद्घोष
के बीच
दब जाती है
उसकी आत्मा की
धीमी आवाज़
जो पिछले जन्म
की याद दिलाए उसे
अब रह जाती है वो
केवल माँ
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4-कहाँ हो तुम?वसन्त
पत्रिकाओं, अखबारों में
देखती हूँ
कविताएँ, लेख,
बसन्त पर कुछ दिनों से
शायद, तुम आ गए
अखबारों ,पत्रिकाओं
में देख रही हूं
खबर तुम्हारे आने की
मैं भी तुम्हे देखने को
आतुर, जाती हूँ गैलरी पर
ढूँढती हूँ ,
मगर नही मिलता
पाम की कतारों के बीच
बौराया हुआ कोई पेड़,
दिखाई देते है
फूलों से लदे पेड़,
मैं फिर इन बेगाने फूलों में
तलाशने लगती हूँ
टेसू ,पलाश,अमलतास
मेरी तलाश अब बाहर से
मेरी गैलरी में रखे
पॉट्स पर आ टिकी
एक नज़र फिर
पैलारगोनियम, जिरियम
पिटूनिया, बेगुनिया
पर डालते हुए
कान पर हथेली धरती हूँ ,
इस आस में
कोयल की कूक ही
सुन लूँ
फिर गाड़ी पर सवार
निकल जाती हूँ
शहर से बाहर
तुम्हारी तलाश में
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5-मोड़
वो सिर्फ एक मोड़ था
जहां ठिठक गई थी मैं
बदल दिए जिसने
सारे दृष्टिकोण
टूट गई लय
अकस्मात्
यूँ सामने आजाने पर
ऊबड़ -खाबड़ पथरीली राह
पर चल रही
एक आस लिए कि
होगी सुंदर छाँव भरी
सीधी राह
जिसके आगे
आएगा कोई तो
ऐसा मोड़.......
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दीपाली ठाकुर, रायपुर छत्तीसगढ़