डॉ.पूर्णिमा
राय,अमृतसर
तारों की बारात नभ ,चंदा लेके
आ गया।
जादू तेरे प्यार का, मन पे मेरे छा गया।।
जादू तेरे प्यार का, मन पे मेरे छा गया।।
मोर ,पपीहा
खुश हुआ, कली
खिली जब बाग में;
सुरभित मन्द हवा चली,भँवरा भी मँडरा गया।।
सुरभित मन्द हवा चली,भँवरा भी मँडरा गया।।
उमड़ी काली जब घटा, डाली-डाली
झूमती ;
पानी बरसा ज़ोर से, मन-आँगन महका गया।।
पानी बरसा ज़ोर से, मन-आँगन महका गया।।
घूँघट ओढ़े लाज का,करती
हार शृंगार है;
रूप सिमटता देख के,दर्पण भी शरमा गया।।
रूप सिमटता देख के,दर्पण भी शरमा गया।।
चलती नाव खुमार में, हर्षित
हरेक बाल है;
उन्नत भारत देश में,सावन खुशियाँ ला गया।।
उन्नत भारत देश में,सावन खुशियाँ ला गया।।
परिवारों में सुख बढ़े, प्रेम-भाव
सौगात दें;
दूर रहें तकरार से,सावन यह समझा गया।।
दूर रहें तकरार से,सावन यह समझा गया।।
सावन के त्योहार में ,माँगें
सबकी ख़ैर हम;
बोल ‘पूर्णिमा’बोलती,सावन सबको भा गया।।
बोल ‘पूर्णिमा’बोलती,सावन सबको भा गया।।
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