पथ के साथी

Friday, August 5, 2016

651




डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर

तारों की बारात नभ ,चंदा लेके आ गया।
जादू तेरे प्यार का, मन पे मेरे छा गया।।
मोर ,पपीहा खुश हुआ, कली खिली जब बाग में;
सुरभित मन्द हवा चली,भँवरा भी मँडरा गया।।
उमड़ी काली जब घटा, डाली-डाली झूमती ;
पानी बरसा ज़ोर से, मन-आँगन महका गया।।
घूँघट ओढ़े लाज का,करती हार शृंगार है;
रूप सिमटता देख के,दर्पण भी शरमा गया।।
चलती नाव खुमार में, हर्षित हरेक बाल है;
उन्नत भारत देश में,सावन खुशियाँ ला गया।।
परिवारों में सुख बढ़े, प्रेम-भाव सौगात दें;
दूर रहें तकरार से,सावन यह समझा गया।।
सावन के त्योहार में ,माँगें सबकी ख़ैर हम;
बोल पूर्णिमाबोलती,सावन सबको भा गया।।
-0-