1-भीकम सिंह
जल
बूँद- बूँद-सा
घुट
-घुटकर
चुप्पी
धर रहा है
जल
मर रहा है
।
मुरझा
गया
झील
तालों में
नदी
नालों में
बोतलों
में भर रहा है
।
ध्वस्त
हो रहा
हिम
का किला
किरचें-
किरचें उड़
हवा
में बिखर रहा है ।
जल
मर रहा है
।
-0-
2-लहर
पुलिनों
पर
गिरती
श्वेत-सी
थोड़ा
खुद को दुबकाकर ।
सागर
पर चलती
मंथर-मंथर
लौटे
तो शरमाकर
।
-0-
क्षणिकाएँ-अंजु गुप्ता
1
उगती है
सर उठाती है
फिर...
पैरों तले रौंद दी जाती है
क्या घास, क्या औरत !
2
फर्क है…
तेरे और मेरे समर्पण में !
मैं तुझको और तू मेरी देह को
समर्पित है ! !
-0-