1-प्रीति अग्रवाल
1-भोर
भोर हो गई
चलो स्नान कर,
सूर्य देव को
अर्घ चढ़ाएँ,
डाल- डाल फिर
चहक- चहक,
नव दिन का
मंगल गीत सुनाएँ ।
मंगल गीत सुनाएँ ।
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2-क्या पता था
मिज़ाज कुछ
सुस्त था,
तन्हाई का
आलम भी,
पिघलती रेत ने
ऐसे गुदगुदाया,
कि मुस्कुराहट
आ ही गई ।
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(चित्रांकन: प्रीति
अग्रवाल)
ई-मेल- agl.preeti22@gmail.com
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दोहे
2-अनिता मण्डा
1
खाली पाती मेघ की, धरा रही है बाँच।
तृष्णा पल-पल बढ़ रही, सुलगी भीतर आँच।।
2
बदरा नभ का पावणां, रखे धरा से हेत।
भूले जब से राह वो, सूख गए हैं खेत।।
3
जंगल, नदिया, बावड़ी, धूप
रही है चूस।
वापस कुछ देते नहीं, मेघ हुए कंजूस।।
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3-मंजूषा
मन
1
मेरे सब सुख आपके, दुख सब मेरे नाम।
प्रभु जी सुनिए यह अरज, कीजै मेरा काम।
2
मुझमें
थोड़ा तू बसा, तुझमें
मेरा वास।
जीवन की खुशियाँ यही, मन क्यों रहे उदास।।
जीवन की खुशियाँ यही, मन क्यों रहे उदास।।