पथ के साथी

Monday, July 15, 2019

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1-प्रीति अग्रवाल
1-भोर

भोर हो गई
चलो स्नान कर,
सूर्य देव को 
अर्घ चढ़ाएँ,

डाल- डाल फिर
चहक- चहक,
नव दिन का 
मंगल गीत सुनाएँ ।

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2-क्या पता था

मिज़ाज  कुछ
सुस्त था,
तन्हाई का
आलम भी,

पिघलती रेत ने
ऐसे गुदगुदाया,
कि मुस्कुराहट 
आ ही गई ।
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(चित्रांकन: प्रीति अग्रवाल)
ई-मेल- agl.preeti22@gmail.com

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दोहे
2-अनिता मण्डा
1
खाली पाती मेघ की, धरा रही है बाँच।
तृष्णा पल-पल बढ़ रही, सुलगी भीतर आँच।।
 2
बदरा नभ का पावणां, रखे धरा से हेत।
भूले जब से राह वो, सूख गए हैं खेत।।
3
जंगल, नदिया, बावड़ी, धूप रही है चूस।
वापस कुछ देते नहीं, मेघ हुए कंजूस।।
-0-
3-मंजूषा मन
1
मेरे सब सुख आपके, दुख सब मेरे नाम।
प्रभु जी सुनिए यह अरज, कीजै मेरा काम।
2
मुझमें  थोड़ा तू बसातुझमें  मेरा वास।
जीवन की खुशियाँ यही, मन क्यों रहे उदास।।