पथ के साथी

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Sunday, November 27, 2016

691



1-डॉ.भगवत शरण श्रीवास्तव
1
मोहन ने  मुरली  धरी,अधर मधुर ले हाथ          
यमुना जल विह्वल हुआ , कर लहरों से बात।
2
मोदी  की  धुन  गूँजती  चारों दिस में आज
भारत  जग पे छा गया  ,बन करके  सरताज।
3
मंजि़ल  पाने के लिए  ,करनी पड़ती  साध
जब तक  काँटा ना चुभे , बने न तब तक बात
4
जनता दुख से दूर हो ,तभी सफल है राज
सुख की छाया जब मिले ,सभी सफल तब काज ।
5
भरे पड़े गद्दार हैं , इन पर रखिए आँख
भारत का चोला पहन  ,करते ताक व झाँक ।
6
सदा घ्यान की  गंग में ,डूबो सौ -सौ  बार
नाम जपो जगदीश का ,लिख-लिख बारम्बार
-0-
2- डॉ.आशा पाण्डेय,कैंप,अमरावती
1
दिया जलाती लेखनी,  अक्षर-अक्षर तेल,
बाती बन लेखक जले, नहीं सरल यह खेल।
2
बच्चों की मुसकान से, ख़ुशी अधिक न कोय,
सुन्दरता झरने लगे,  गर दो दतुली होय ।
3
डाली कोयल कूकती, सुन हर्षाते लोग ,
जाने ना काहे लगा, कूकन का यह रोग ।
4
काश बीज ऐसा लगे, महके उसपर फूल ,
चढ़े देव के शीश पर, पर भूले ना मूल ।
5
मौन बड़ा मारक हुआ, शब्द हुए बेकार ,
मोटी पलकें हैं झुकीं, करती कड़ा प्रहार ॥
-0-
3-आभा सिंह
 1
अँगड़ाई लेने लगा, परिवर्तन का दौर,
मीठी- मीठी ठण्ड है, नहीं गरम को ठौर।
 2
गलियारे की धूप का, जाग गया जो गीत,
खिली- खिली तिदरी हुई, छज्जे लुढ़का शीत।
 3
नीर ताल का ठिर रहा, रहट रहा है ऊँघ,
नंगे पाँव हवा चले, झूमे सरसों सूँघ।
 4
कुहरे लिपटे खेत हैं, सीला सा परिवेश,
हरफ़ हरफ़ को पोंछकर, मेड़ पढ़े संदेश।
 5
ठंडा मौसम बेअदब, कँपा रहा बेभाव,
थोड़ी राहत दे रहा, जलता हुआ अलाव।
 6
छप्पर में भी छेद है, चादर में भी छेद,
जाड़ा निर्मोही हुआ, रहा हाड़ को भेद।
-0-

Monday, May 2, 2016

634

1-आँसू छंद : डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
1
जब यादें संग तुम्हारी
मैं हँसती ,मुसकाती हूँ
तुम दे जाते हो पीड़ा
मैं उसको भी गाती हूँ ।
2
सुख-दुख समभाव मुझे सब
गम ख़ुशियों का डेरा है
अब लेश न मुझमें मेरा
जो शेष बचा तेरा है ।
3
ये कड़ी धूप छाया दे
कंकड़ -कलियाँ राहों में
इतने निष्ठुर मत होना
संगीत सुनो आहों में ।
4
मिलना तो मुझको वो ही
जो क़िस्मत का लेखा है
सीपी या रजकण आगे
बूँदों ने कब देखा है ।
5
मैं गिरती हूँ उठती हूँ
लहरों के संग नदी सी
बस मूक न सह पाऊँगी
इस बीती त्रस्त सदी सी ।
6
पूजन-वंदन कब चाहा
हाँ ! मर्यादा रहने दो
मत रोको पथ मेरा भी
अविरत ,अविरल बहने दो
7
इतना चाहा पूरा हो
हर सुंदर स्वप्न तुम्हारा
ओ प्रेम पथिक यूँ तुमपर
सर्वस्व लुटा मन हारा ।
8
निर्मम दुनिया जीने का
आधार तुम्हीं से मेरा
मन के सच्चे मोती हो
शृंगार तुम्हीं से मेरा ।
-0-
2-दोहे-आभा सिंह
1
नदिया दुबली हो रही, जल जैसे आभास।
नेह सरसता खो रही,उचट रहा विश्वास ॥
2
गरमी चैन बुहारती,धूप बनी मुँहजोर ।
हलक सुखा बेरहम,लू-लपटें झकझोर
 3
गरमी का कर्फ़्यू  लगा,सूनी गलियाँ ,बाट।
सुबह दुपहर घूम रही,ले आँधी की हाट ॥
4
गरमी की थीं छुट्टियाँ,ख़ूब मनाई साथ ।
गाने गप्पें हुड़दंग,और ताश के हाथ ॥

-0-

Wednesday, May 20, 2015

आजकल




1-कविता
सूख गई संजीवनी जड़
मंजु गुप्ता (वाशी , नवी मुंबई )


भोर किरण जो
सेवाओं से सवेरा लाई
समाज - देश उसका ऋणी
संग - साथ , जग में
खुशियों की कोहिनूर बनी
वे किरण थी अरुणा शानबाग।


लेकिन एक दिन
दुःख के मेघ मँडराए
जंजीरों में बाँधके उसे
जहरीले नाग ने
लूटी उसकी लाज
बेरहमी का ये गूँगा समाज।

नीर में ढला तूफ़ान
कोमा तम में छाया प्रात
रिसते रहे साँसो के घाव
झेले चार दशक दो साल
तन - मन का अशक्त
घर वालों ने छोड़ाा  साथ।


मानवता के मसीहे
हुए उसके अपने
करने लगे उसका
जीवन  रौशन
सँवारते कई हाथ
करे पूरा देश गुमान


लेकिन कह न पाई
अपनी व्यथा-कथा
पतझड़ी जीवन तरु से
धीरे -धीरे झड़ी सारी पत्तियाँ
सूख गई संजीवन से संजीवनी जड़
लेकर अन्तिम साँस ।

-
2-आयोजन



आभा सिंह के लघुकथा संग्रह " माटी कहे" का विमोचन समारोह
दिनांक. 14मई2015,4 बजे स्पंदन महिला साहित्यिक एवं शैक्षणिक संस्थान जयपुर द्वारा लेखिका आभा सिंह के लघुकथा संग्रह माटी कहे का विमोचन पिंकसिटी प्रेस क्लब में  मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार मृदुला बिहारी, विशिष्ट अतिथि प्रो.नन्दकिशोर पाण्डेय, अध्यक्ष डॉ. हेतु भारद्वाज, स्पंदन अध्यक्ष नीलिमा टिक्कू, लेखिका आभा सिंह एवं डॉ नवलकिशोर दुबे द्वारा किया गया।
   
    श्रीमती रूबी खान द्वारा सरस्वती वंदना की गई। कार्यक्रम के आरम्भ में स्पंदन अध्यक्ष नीलिमा टिक्कू ने मंचस्थ अतिथियों ,सभागार में उपस्थित साहित्यकारों एवं मीडिया कर्मियों का स्वागत करते हुए लेखिका आभा सिंह को बधाई दी।नीलिमा टिक्कू ने कहा कि आभा सिंह के लघु कथा संग्रह में सामाजिक विडम्बनाओं पर आधारित 86 लघुकथाएँ  सम्मिलित हैं ।आभाजी ने नपे तुले शब्दों में जीवन के विभिन्न पहलुओं की कड़वी सच्चाइयों से पाठकों को इस तरह रू--रू करवाया है कि पाठक गहन आत्ममंथन करने लगता है।सहज,सरल व रोचक भाषा शैली में लिखी ये पुस्तक पाठकों को बाँधे रखने में पूर्णतःसक्षम है।सीमित शब्दों में सशक्त प्रस्तुति लघुकथा की विशेषता होती है और आभाजी उस कसौटी पर खरी उतरीं हैं ।दर्पण के अक्स रोचक लघुकथा पढ़ी गई।समाज को आईना दिखाती घुकथाओं हेतु आभाजी को शुभकामनाएँ दीं।
 कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ.नवल किशोर दुबे ने आभासिंह की घुकथाओं में ध्यात्म का स्पर्श बताते हुयथार्थ की बुनियाद एवं संवेदना की गहन दृष्टि को रेखांकित करती ऐसी कथाएँ बताईं, जिनमें गहन जीवन दर्शन का संयोग इन कथाओं को विस्तृत भाव भूमि प्रदान करता है।उन्होंने पुस्तक की नीर- क्षीर समीक्षा प्रस्तुत की
       मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार मृदुला बिहारी जी ने अपने उद्बोधन में कहा किमाटी कहे की छोटी छोटी कथाएँ हमारे आस- पास का ही जीवन सत्य है।ये रचनाएँ बतातीं हैं कि जो यथार्थ है वह क्या है।ये लघुकथाएं वे दृष्टि हैं जो परतों केभीतर झांक लेती हैं ।ये पाठकों की सोच पर दस्तक देतीं हैं ।यह महज लक्षण या अर्थ व्यक्त नहीं करतीं,यह संभावनाएँ भी व्यक्त करतीं हैं।
       विशिष्ट अतिथि प्रो. नन्द किशोर पाण्डेय ने लघु कथा संग्रह को  समय की माँग व पूर्ति बताते हुए।उल्लेखनीय बताया। स्पंदन सदस्य सुश्री नेहा विजय,डॉ. रत्ना शर्मा ने आभा सिंह की लघु कथाओं का पाठ किया। लेखिका आभा सिंह ने अपनी रचना प्रक्रिया के बारे में बताया।उन्होंने कहा कि मन के आवेगों के तहत सोचने की गूढ़ प्रक्रिया से गुजर कर भाव आकृति में ढल जाते हैं।सोच की नवीनता,कथन की सपाट शैली, संवाद का चातुर्य, व्यंग्य का पुट  और प्रस्तुतीकरण का चुटीला रूप यही है लघुकथा का गढ़न।इन्ही मानको को ध्यान में रखकर प्रस्तुत संग्रह की लघुकथाओं को गढ़ने का प्रयास किया है।पूरा संग्रह जैसे मेरी लघुकथा यात्रा है।
 कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. हेतु भारद्वाज ने कहा कि लेखिका आभासिंह. ने अपने लघुकथा संग्रह की कथाओं में वन की विसंगतियों का चित्रण किया है।बडी़ कहानियों के मुकाबले में लघुकथाओं को पिरोना मुशकिल होता है; लेकिन आभा जी का लेखन -कौशल है और वो इसमें पूर्णतः सफल रहीं हैं। कार्यक्रम केअंत में धन्यवाद प्रस्ताव. उपाध्यक्ष माधुरी शास्त्री जी ने दिया।कार्यक्रम का सफल संचालन सचिव डॉ. संगीता सक्सेना ने किया।
-0-सम्पर्क-आभा सिंह-09928294119 ;08829059234