पथ के साथी

Monday, July 14, 2025

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1-ओ फूल बेचने वाली स्त्री!

अनिता मंडा

 


 

ओ फूल बेचने वाली स्त्री!

    मुझे नहीं पता

    कब से कर रही हो प्रतीक्षा

    फूलों की टोकरी उठाए

    होने लगी होगी पीड़ा

    तुम्हारी एड़ियों में

 

तुम्हारे उठे हुए कंधे

     कितना सुंदर बना रहे हैं तुम्हें!

 


ओ फूल बेचने वाली स्त्री!

      मुझे नहीं पता

      फूल चुनते हुए

      तुम्हारी उँगलियों को

      छुआ होगा काँटों ने

      तुम्हारे गोदनों को

      चूम लिया होगा

       तुम्हारे प्रेमी ने

 

मुद्रा गिनते तुम्हारे हाथ

   कितना सुंदर बना रहे हैं तुम्हें!

 

ओ फूल बेचने वाली स्त्री!

     मुझे नहीं पता

     तुम गई हो कभी देवालय

     इन मालाओं को पहनने को

     महादेव हो रहे होंगे आकुल

     एक-एक अर्क-पुष्प को

     धर लेंगे शीश

    

यह श्रद्धा का संसार

  कितना सुंदर बना रहा है तुम्हें! 

 

ओ फूल बेचने वाली स्त्री!

    तुम्हें नहीं पता

     तुम्हारे फूलों में

     मुस्कुराते हैं महादेव

     तुम्हारे परिश्रम में 

     आश्रय पाता है सुख

 

दारुण दुःख भरे संसार को

   कितना सुंदर बना रही  हो तुम!

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2-दुःख नहीं घटता

अनिता मंडा

 

बहुत रो लेने के बाद भी

दुःख नहीं घटता

न पुराना पड़ता है

 


सोते-सोते अचानक

नींद के परखच्चे उड़ते हैं

स्मृति के बारूद

रह रहकर सुलगते हैं

 

बहुत रो लेने के बाद भी

हृदय की दाह नहीं बुझती

 

शब्दों के रुमाल सब गीले हो गए

घाव हरे रिस जाते हैं

 

चोट जब गहरी लगी हो

रूदन हृदय चीरकर निकलता है

 

सौ सूरज उगकर भी

अँधेरे की थाह नहीं पाते

 

गले में ठहरी रुलाई

खींच रही है गर्दन की नसें

 

मृत्यु का दिल 

एक कलेजे से नहीं भरता

वो रोज़ ही मेरा

लहू खींच रही है

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 3-मंजु मिश्रा



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