पथ के साथी

Sunday, April 7, 2019

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रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
1
किताबें जलाने से जली कब कहानियाँ।
 रोक सके पहाड़ कब  नदी की रवानियाँ।
सुबह या शाम इक दिन जाना है हमें भी
छोड़ जाएँगे पीछे कुछ तो निशानियाँ।
2
घाव सारे सी लूँगा मैं
ज़हर दे दो पी लूँगा मैं
दूँगा दुआएँ सदा तुझे
यादें साथ जी लूँगा मैं।
3
जग की सब नफ़रत  मैं ले लूँ
तुझको केवल प्यार मिले।
हम तो पतझर  के वासी हैं
तुझको सदा बहार मिले।
सफ़र हुआ अपना तो पूरा
चलते चलते शाम हुई
तुझको हर दिन सुबह मिले
नील गगन -सा प्यार मिले।