पथ के साथी

Wednesday, September 25, 2024

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शब्द- रश्मि विभा त्रिपाठी

फुसफुसाहट, शालीन संवाद


बहस या चीख़-पुकार
शब्द बुनते हैं एक दुनिया

खोलके अभिव्यक्ति के द्वार
एक रेशमी रूमाल 

या एक नुकीली कटार
या दिल को बेधते 

या पोंछते हैं आँसू की धार

स्याही और कलम से 

ये बनाते हमारे भाग्य की रेखाएँ
इन्हीं शब्दों के गलियारे से 

हम तय करते हैं दिशाएँ
सब भस्मीभूत कर दे

एक शब्द वो आग भड़का दे
जीवन छीन ले या फिर से 

किसी का दिल धड़का दे

नीरव को कलरव में बदले

फिर कलरव का खेल पलटता
शब्द की डोर से आदमी 

आदमी से जुड़ता और कटता
शब्द दुत्कारता या 

आवाज़ देकर पास बुलाता है,
पल में रोते को हँसाता है

हँसाते को रुलाता है
शब्द के दम पर ही 

कोई बस जाता है यादों में
ये ही छलिया और ये ही 

साथ जीने- मरने के वादों में
दूरियों की दीवार में बना देते हैं 

ये नजदीकी का दर
शब्दों के पुल पर हम मिलते 

उस पार से इस पार आकर
चुप्पी के हॉल में 

शब्दों का ही गूँजता संगीत है
इन्हीं से बनते हैं दुश्मन

इन्हीं से हर कोई अपना मीत है

विश्वकोश के बाग में जाएँ

तो शब्दों के फूल करीने से चुनें
कुछ भी कहने से पहले 

थोड़ी इन शब्दों की भी सुनें
शब्द हमें दूर कर सकते हैं

शब्द ही हमें रखते हैं साथ
खोलते दिल के दरवाज़े 

शब्दों के गमक भीगे हाथ
उसने शब्दों के वो फूल चुने थे

जिनमें थी पुनीत प्रेम की सुवास

वो नहीं है मगर 

ज़िन्दा है उसके होने का अहसास
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