केरी के गोले
अंजू खरबंदा
कोई दस ग्यारह बरस की रही हूँगी मैं, उस समय गैस चूल्हा नहीं हुआ करता था घरों में । होता भी होगा तो मुझे
मालूम नहीं । हम लोग खाना पकाने के लिये अँगीठी का उपयोग
किया करते थे । उसमें कोयले डालकर उसे जलाया जाता था।
कोयले लाने के लिए मैं भी कई बार पापा जी के साथ कोयले की टाल पर जाया करती थी। खूब बड़ा
तराजू होता, जिस पर मन के हिसाब से कोयला तोला जाता । बोरी
में कोयले भर कर लाते और होदी में सँभालकर
रख दिया जाता । जरूरत अनुसार उसे निकाला जाता, हथौड़ी से उसके छोटे टुकड़े किए जाते और अंगीठी जलाई जाती।
बड़े बड़े कोयले खत्म होने लग जाते, तो आखिर में बच जाती केरी यानी कोयलों के बहुत ही छोटे- छोटे बारीक टुकड़े, जिन्हें जलाने में प्रयोग तो
किया जाता, लेकिन कोयले के रूप में नहीं बल्कि केरी के गोलों
के रूप में ।
हमारे घर के एक तरफ गली थी और दूसरी तरफ
खूब खुला मैदा,न जिसके चारों ओर घर बने
हुए थे । मेरी अम्मा एक पुरानी लोहे की बाल्टी में बारीक कोयलों की केरी में गोबर
व तालाब की चिकनी मिट्टी को मिला कर खूब अच्छे से हिलाती । जब घोल अच्छे से तैयार हो जाता,
तो मैदान के बीचों- बीच खुली धूप वाली जगह पर इस घोल के
छोटे-छोटे गोले बनाकर जमीन पर सजा दिए जाते ।
अम्मा गोले बनाने जाती तो मुझे भी आवाज
लगा देती। मैं भरसक कोशिश करती छुपने की; क्योंकि मेरे जी को यह सोचकर ही कुछ होने लगता कि
गोबर में हाथ डालना पड़ेगा । पर अम्मा तो अम्मा है, वह भला
मुझे कैसे आसानी से छोड़ देती । मैं कितनी भी ना-नुकुर करती, वह
मेरी बाँह पकड़कर ले जाती ।
शुरू-शुरू में मैं नाक- भों
सिकोड़ती; पर धीरे-धीरे मुझे भी आनंद आने लगा । यह काम एक आर्टिस्ट की तरह ही किया जाता । कोयले की केरी, चिकनी मिट्टी और गोबर का सही अनुपात, अच्छे से खूब
देर तक हिलाते रहना फिर गोल-गोल सुंदर-सुंदर गोले बनाना और सजाना और फिर एक दो दिन
तक खूब अच्छी तरह सूख जाने पर एक कनस्तर में धीरे-धीरे सजाकर रखना ताकि वे
टूटे-फूटे नहीं,सुरक्षित रहें ।
जब अँगीठी जलाई
जाती और उन गोलों को डाला जाता, तो बड़ी खुशी मिलती, छोटे भाई बहनों को कहती, “देखो ये गोले मैंने अम्मा
के साथ मिलकर बनाए।”
पहले के लोग कोई भी चीज ज़ाया नहीं होने देते थे । जिन वस्तुओं को हम बेकार समझ
फेंकने की सोचते, वे उनका कोई न कोई सदुपयोग सोचकर पुन:
प्रयोग में ले आते, भले ही उनके पास कॉलेज की डिग्री नहीं थी; पर अनुभव की डिग्री के आगे कॉलेज की डिग्री बिलकुल फीकी है ।
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