दोहे
आशा पाण्डेय
1
जीवन पल-पल बीतता, बुझी न मन की प्यास,
हर
पल नश्तर चुभ रहे, पर आँखों
में आस।
2
जीवन
सारा होम कर, पाई केवल
राख,
पाई-पाई
दे दिया, फिर भी
बिगड़ी साख।
3
अक्षर-अक्षर
ब्रह्म है, बोलो सोच
विचार
कभी
तरल करते हृदय, करते कभी
प्रहार।
4
बया
बनाती घोंसला, डाली- बेर, बबूल
घर
बुनने में है मगन, काँटे जाती
भूल।
5
शब्द-शब्द
में विष भरा, उतरे दिल
के पार
जीवन
भर आहत करे, एक बार
का वार।
6
थोड़ी-सी
हो वेदना, थोड़ा-सा
अनुराग
पर-दुःख
से दिल हो दुखी, तब सोहे
वैराग।
7
पीकर
अश्रु हँसे नयन, मजबूरी
की बात
वरना
किसकी चाह है, रोते बीते
रात।
8
दुनियादारी
सीख ली, पाकर इतने
घात
कोमल
मन पीछे छुपा, अब तौलूं
हर बात।
9
सींचा
जिसको प्रेम से, माली ने
दिन रात
वही
चुभाता है उसे, काँटों
की सौगात।
10
बादल
घिरते देख कर, होता खुशी किसान
बरखा
में कैसे हँसे, जिनके नहीं
मकान।
12
किया
नयापन शहर का, सारे पेड़
कटाय
घर
से है बेघर हुआ, उड़ि-उड़ि
पंछी जाय।
13
कल-कल
की ये सुखद धुन, संगम तट
की शाम
भारद्वाज
ऋषि से मिले, यहीं कहीं थे राम।
14
दिवस
ठिठुरने अब लगा, संझा हुई
उदास
जला
आग बतिया रहे, घुलने लगी
मिठास।
15
दिन
छोटा होने लगा, रातें लम्बी
होंय
तनकर
रहना है कठिन, ठिठुरे
हैं सब कोय।
16
हर
रिश्ते नाते यहाँ, करते आज
हिसाब
गणना
में कमजोर मैं, कैसे होऊँ
पास।
17
जो
अपनों से दूर हैं, वह जाने
हैं मोल
अपनों–सा
कोई नहीं, चाहे कड़ुवे बोल।
18
कुछ
रिश्तों की नोंक में, होता तीखापन
जीवन
भर चुभते रहे, मिले ना
अपनापन।
19
घर
की दीवारें ढहीं, दरक उठा दालान
आँगन
में चूल्हे बँटे,
सिसक रहा खलिहान।
20
लिख-लिख
कागज फाड़ते, लिख ना
पाई बात
कैसे
अक्षर बोलते, खाए दिल आघात।
21
जगा
न पाई मैं कभी, अंतर में
विश्वास
भले
ओढ़ते तुम रहे,
अधरों पर मृदु हास।
22
दिया
जलाती लेखनी, अक्षर-अक्षर
तेल
बाती
बन लेखक जले, नहीं सरल
यह खेल।
23
यह
संसार जगा रहे, लेखक करे
प्रयास
सोए ना संवेदना, मानवता की आस।
24
जिस
पथ अँधियारा घिरा, नहीं रोशनी
शेष
वहीं
दीप बन जल उठे, लेखनी यह
अशेष।
25
पानी
सूखा आँख का, डूब गया
संसार
हार
गई संवेदना, घातक है
यह मार।
26
मौन
बड़ा मारक हुआ, शब्द हुए
बेकार
मोटी
पलकें हैं झुकी, करतीं कड़ा
प्रहार।
27
साँझ
हुई पक्षी उड़े, अपने घर
की ओर
बच्चे
रस्ता देखते, बंधी हुई
है डोर।
28
शांति
दिलाती झोपड़ी, महल दुखों
की खान
प्रेम
गरीबी को मिला, धन को झूठी
शान।
29
टहनी
से टूटा हुआ, पत्ता पड़ा
उदास
बस
इतने दिन ही लिखा, अपना यहाँ
निवास।
30
पग-पग
ठोकर मिल रहा और घाट-प्रतिघात
बीच
इसी के खोज तू, प्रेम पगी
दो बात।
-0-आशा
पाण्डेय, अमरावती, महाराष्ट्र