पथ के साथी

Monday, March 29, 2021

1065- उतर स्वर्ग से आ गई

 

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

1

चुम्बन से पलकें सजेंचमके ऊँचा भाल।

अधरों  का जो रस मिले, हार मान ले काल।

2

इन हथेलियों में छुपा, कर्मठता का सार।

रस प्लावित अंतर हुआ, चूम इन्हें  हर बार।

3


खुशबू फूलों की रची
हर करतल में आज

इन हाथों को चूमकर, मिला प्यार का राज।

4

अधरों से था लिख दियाकरतल पर जब  प्यार।

सरस आज तक प्राण हैं, पाकर वह उपहार।

5

चूम- चूमकर मैं लिखूँइन हाथों में प्रीत।

रेखाएँ दमके सभी,  पाकरके मनमीत।

6

फिर से आकरके मिलो, जैसे नीर- तरंग।

उर की तृष्णा भी मिटे, भीग उठें सब अंग।

7

कहाँ लगे तुम ढूँढने, इन हाथों की रेख।

कर्मठ हाथों ने लिखे, चट्टानों पर लेख।

8

पत्थर तोड़े बिन थके, तब पी पाए नीर।

इसलिए तो जानतेक्या होती है पीर।

9

आएँ लाखों आँधियाँ, घिर आएँ  तूफान।

रुकना सीखा हैं नहींइतना लो तुम जान।

10

सौरभ उमड़े आँगनापथ में हो उजियार।

आशीषों का छत्र होतेरे सिर हर बार।

11

तेरे सुख में साँझ हैतेरे सुख में भोर।

पीर उठे तेरे हियेम दुखते मन के छोर।

12

पता नहीं किस यक्ष ने, दिया हमें अभिशाप।

तुम्हें पुकारूँ मैं नहीं, मुझको भी न आप।।

13

रूप तुम्हारा देखके, जड़, चेतन हैरान।

उतर स्वर्ग से आ गई, बनकरके उपमान।।