4-पुष्पा मेहरा
1
बल आशीषों का दिया,स्वार्थ तुला न तोल ।।
2
नयन बरौनी -सी रहे,सदा हमारे साथ ।
ऐसी माँ के चरण में,झुके सदा यह माथ ।।
3
माँ की समता ना कहीं,वह बरगद की छाँव ।
आशीषों की सघनता,मिलती उसके ठाँव ।।
4
शरबत बन कर ढल गई,माँ की
कटु फटकार ।
भटका मन पथ पा गया,माँ
का मिला दुलार ।।
5
माँ ने चिट्ठी में
लिखा,मीठा -मीठा प्यार ।
पढ़-पढ़ आँखें तर हुईं,आखर थे रसधार ।।
6
मातृ दिवस में याद
कर,फिर ना जाना भूल ।
वृद्धाश्रम में डाल
उसे,भेंट न देना शूल ।।
-0-
5- एक खास दिन
कमला घटाऔरा
माँ के लिये एक खास दिन
है चुन रखा पश्चिम ने कह
-'मदर्स डे'
देते फूलों के गुलदस्ते
और सोगातें
बच्चे से बड़े तक जुट
जाते
माँ को अपना प्यार जताने
या फिर प्यार का फर्ज
निभाते
उनके मन की वो ही जाने ।
हमारा तो हर दिन माँ के
लिए है
पूजनीया आराधनीया है ।
नित्य सुबह चरण स्पर्श
कर
आशीर्वाद लेने का देवी
रूपा जननी का ।
माँ चल दे जहाँ छोड़ के
पिता भी पिता नहीं रहता
बन जाता पराया ।
अफसोस है इतना
जाने क्यों ,
किस प्राप्ति की होड़ मे
जुटकर
सन्तानें हमारी जमाने के
संग चल पड़ी ।
छोड़ माँ -बाप को ।
माँ पीड़ा में जीती है ,
परवरिश पा पैरों पर खड़े होते ही
क्यों बच्चों द्वारा
भुलाई जाती है ?
कटे बुढ़ापा रो -रो कर
पुरानी चीजों की तरह
क्यो ठुकराई जाती है ?
जो जन्म से माँ होती है
माँ बनते ही वह और महान
हो जाती है
ममता के घन से घिर वह
दिन रात
ममता रस बरसाती है
उसके त्याग , तपस्या , सेवा को भूल
क्यों बच्चों द्वारा
झुठलाई जाती है ?
भूलते हैं क्यों, जिससे जन्म मिला
जिसके दम से यह जगत्
निरन्तर चल रहा
अमर बेल- सा बढ़ रहा
क्यों उसकी महत्ता
बिसराई जाती है
काश ! सब को मिले वो आँख
हर बच्ची में देखे रूप
माँ का
बुरी नियत से उसे छूने
से पहले
जागे उसके अंदर का बच्चा
जिसने पय-पान किया
माँ का
दुष्कर्म करने से पहले
आँख खोले यदि वह जाने
मन ही मन दुत्कारेगा खुद
को
नहीं सूखने देगा नेह की
पावन नदी को
औरों से बचाने हित दे दे
जान अपनी
आगे मिलने वाली ठंडी छाँ
को
भविष्य की माँ को ।
' निर्भय' नहीं निर- भय हो कर जिए
जन्म ले आने से जाने तक
वह
वृद्धावस्था में उसे
सेवा और सत्कार मिले
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