दोहे
1-रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
1
मधुर भोर को
ढूँढते तुझमें पागल नैन ।
साँझ हुई फिर रात भी, तरसे
मन बेचैन।
2
चिड़िया पिंजर में
फँसी, दूर बहुत आकाश।
पंख कटे स्वर भी
छिना, पंजों में भी पाश।
-0-
2-डॉ. उपमा शर्मा
नारी तू नारायणी,फूँक
शक्ति का शंख।
मुक्त गगन में उड़
ज़रा,फैला अपने पंख।
-0-
3-कभी सोचती हूँ
प्रियंका गुप्ता
कभी
सोचती हूँ
रेत
बन जाऊँ
पर
फिसल जाऊँगी हाथों से;
कभी
बन जाऊँ अगर
काँच
का एक टुकड़ा
तो
चुभ जाऊँगी कहीं
खून
निकल आएगा;
बर्फ़
सी जम जाऊँ अगर
तो
धमनियों में बहता खून
न जम
जाए कहीं;
चलो,
सोचती
हूँ
क्या
बन जाऊँ
जो तुम्हें
पसन्द हो
पर
फिर लगता है
मैं 'मैं' ही रहूँ तो बेहतर,
वरना
मेरे
'मैं' न होने पर
तुम
प्यार किससे करोगे ?
-0-
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
क़ैद हो गई
पिंजरे में चिड़िया
भीतर चुप्पी
बाहर अँधियार
मन में ज्वार,
चहचहाना मना
फुदके कैसे
पंजों में बँधी डोरी
भूली उड़ान,
बुलाए आसमान।
ताकते नैन
छटपटाए तन
रोना है मना
रोकती लोक-लाज
गिरवी स्वर,
गीत कैसे गाएँगे
जीवन सिर्फ
घुटन की कोठरी
आहें न भरें
यूँ ही मर जाएँगे।
चुपके झरे
आकर जीवन में
बनके प्राण
हरसिंगार-प्यार,
लिये कुठार
सगे खड़े हैं द्वार
वे करेंगे प्रहार।