पथ के साथी

Saturday, September 17, 2016

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1-विनोद कुमार दवे

कविताएँ

1-मेरे गाँव में

कल रात मेरे गाँव में
बारिश हुई
और मीलों दूर मैं
धुएँ से भरे इस शहर में
पूरा का पूरा भीग गया।

कल रात मेरे गाँव में
बारिश हुई
और मैं भीनी माटी की सौंधी महक को
महसूस कर सकता हूँ
यहाँ भी
जहाँ दूर- दूर तक
बादलों का नामोनिशान नहीं है।
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2-नीरवता

शांत समन्दर से एक नदी ने पूछा-
प्रिय जो ये मेरा कोलाहल है
तुझमें मिलकर इतना नीरव कैसे हो जाता है?
सखा ये इतनी शांति ओढ़कर कोई कैसे रह पाता है?
समन्दर ने अपने नयनों को खोला
बिन बोले आँखों से बोला-
प्रिये! तुझमें कोई शोर नहीं
संगीत प्रकृति का गुंजित है
मेरे रोम-रोममें तेरे प्रेम का
कम्पन सदा स्पंदित है
ये प्रेम तेरा मुझमें मिलकर
पूर्णता को प्राप्त हो जाता है
तभी समन्दर तेरे प्रेम में
शांति से सो पाता है।
-0-
3-पेड़ नहीं मुरझाता है

ुछ पत्तों के पीलेपन से पेड़ नहीं मुरझाता है
जिसकी जड़ों में जीवन है वो फिर से फलजाता है

मुझे किस चीज के खो जाने का शोक मनाना चाहिए
सब कुछ जब भगवान का है मनुज क्या खोता क्या पाता है

ये देह तो कुछ लम्हों की पृथ्वी पर मेहमान है
काल चक्र के इस चक्कर में कोई आता कोई जाता है

तुझे मेरे शब्दों में कोई अपनापन और प्रेम दिखा है
ये शायर बस तेरे हृदय की व्यथा के गीत सुनाता है

खुद का मतलब तो हर कोई पहले पूरा करता है
जो निःस्वार्थ भाव से करते है वो ही कर्म कहलाता है

मैं क्या हूँ  कौन हूँ ,जो दान-दाता बनकर फिरता हूँ
ईश्वर का ही दान है सब वो ही देने वाला दाता है
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4- जब ईश्वर ने जगत रचा

जब ईश्वर ने जगत रचा,तब अपनी काया छोड़ गया
माँ के रूप में इस धरती पर,अपनी छाया छोड़ गया।

हर मुश्किल से हर संकट से, हमको जिसने तारा है
इस अंधियारे अंतरिक्ष में,बस माँ ही एक सितारा है।

जब जब मैंने ख़ुद को किसी दलदल में धँसता पाया
माँ के हाथ का मिला सहारा तब खुद को हँसता पाया।

साथ न उनका त्यागना भले अहंकार का झोंका आ जाए
अपना बचपन याद रखना जब माँ को बुढ़ापा आ जाए

दूर शहर में शोर में ज़िन्दगी तनहाई के हाथ रही
वो माँ की यादें थी,जो हर पल मेरे साथ रही

जादू है उन आँखों में,मेरे छिपे अश्कों को जान लिया
हँसने का ढोंग काम न आया, माँ ने दुःख पहचान लिया

सबने पूछा कितने पैसे कितना धन तुमने पाया है
बस माँ थी जो पूछ रही क्या तुमने खाना खाया है
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परिचय = साहित्य जगत में नव प्रवेश।  पत्र पत्रिकाओं यथा, राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर,अहा! जिंदगी, कादम्बिनी , बाल भास्कर आदि  में कुछ रचनाएं प्रकाशित। अध्यापन के क्षेत्र में कार्यरत।
विनोद कुमार दवे,206,  बड़ी ब्रह्मपुरी, मुकाम पोस्ट=भाटून्द, तहसील =बाली
जिला= पाली,  राजस्थान-306707
मोबाइल=9166280718
ईमेल - davevinod14@gmail.com

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2-कमला घटाऔरा
1-हे बंदिनी 

रस्से से बँधी ,
मालिक के साथ साथ
चलती जाती
हे बंदिनी  ! हे गो माता ! !
ये दर्द भरी गीली आँखें
कैसे तेरे चेहरे पर आन जुड़ी ?
क्या तूने सूँघ तो नहीं लिया
भविष्य अपना -
कसाई के घर ले जाजाने का ?
तू जाते जाते मूक नजरों से
जाने क्या क्या कह गई
हो खड़ी मैं देखती रह गई
हृदय के सूखे जख्मों को
लगा छील गया जैसे कोई
ऐसा दर्द जो सिर्फ मिलता है
मानवों द्वारा नारी को ही ,
रिसता रहता उम्र भर वह
दिया उसके मालिक द्वारा ।
हे माता ! तुझे क्यों मिल गया ?
क्या तेरे मेरे मन ने आपस में कोई गुफ्तगू कर ली ?
दर्द एक दूसरे का  साँझा करके आँखें भर ली ?
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2 -कलश प्रेम का

दुनिया की कटुता
मत पालो दिल में
कितने दिन रख पाओगे
तुम्हारे अन्दर
भरा जो कलश प्रेम का
छलकने दो उसे जरा
राहत मिलेगी
बेवजह के तनाव से
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3- खुशबू प्यार की

प्यार एक खुशबू ऐसी
जिसे ढूँढ़ते हम दूर दराज़
रहे समाई मन में
मृग की नाभि में बसी
कस्तूरी की तरह
हम भटकते रहते
विक्षिप्त से उम्र भर ।
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3-कोमल सोमरवाल
छज्जे पर चाँद

मैं चाँद आ बैठा हूँ,
फलक के सबसे
ऊपरी छज्जे पर
ढूँढ रहा हूँ तुझको
इस स्याह रात में,
तेरी एक झलक की बेकरारी में
उड़ेलदी चाँदनी सारी
धरा के कोने-कोने पर

शाम ढले तुम छत पर आती हो
मुझे देखकर ख़ुशी से प्रेम  गीत सुनाने
और मैं जिद्दी- सा
तेरी छत पर कभी उतरा नहीं
धड़कन की लय पर तुझे बाँहों में
ले थिरका नहीं
तुम जब मोहब्बत से
देखती हो मुझे
मैं आगे कर देता हूँ
कुछ बादल के टुकड़े

तुम देर तक निहारती ही मुझे
मैं इतराता हूँ खुद पर
तेरे छत की सीढियाँ चने पर
पत्थर दिल धकाया करता हूँ
वो अनकही बातें
जो तू सिर्फ मुझसे किया करती है
रों से अपनी जो ताने बुना करती है
हर बार मैं अपना दिल खो बैठता हूँ
इक दिन तुझसे न मिलने का ख़ौफ
महीने भर मुझको खलता है

बन्द कर रखी है मैंने
चाँदी की डिबिया में महक तेरी
अमावस को उसे धीरे से खोलता हूँ
लो आ रहा है तेज ज्वार दरिया में
शायद ये तेरे क़दमों की आहट है
मेरे तलबगार हैं सब इस जहाँ में
पर इस चाँद का इश्क़
तेरी मुस्कराहट है....!!!

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कोमल सोमरवाल,पता:-लाडनूँ, राजस्थान
ई मेल:-komal951995@gmail.com
शिक्षा:-स्नातक उत्तीर्ण, स्नातकोत्तर में अध्ययनरत
लेखन:-गजल,कहानी,हाइकु,कविता