पथ के साथी

Saturday, December 3, 2011

ओस है ये जिंदगी


ओस है ये जिंदगी
स्वाति वल्लभा राज

ओस की बूँदों की तरह ये जिंदगी,
रात की कोशिशों में बनती और
सूरज की पहली किरण में बिखर जाती

अगले पल से फिर वही नाकाम कोशिश,
खुद को बनाने की
बनने के बाद कुछ वक़्त ठहरने की|
ठहराव के बाद कुछ पल जीने की
पर जीने से पहले ही एक डर गुम जाने का
फिर डर  के सच्चाई का सामना

ओस की तरह दूब पे बिखर कर
चमकना चाहे ये ज़िन्दगी
पल भर को ही निडर हो,
जी जाना चाहे ये जिंदगी।
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