पथ के साथी

Thursday, June 23, 2022

1219-कारवाँ

 प्रीति अग्रवाल

  

कितने वर्ष हो गए

ज़िन्दगी की ऊँची-नीची


पथरीली राहों पर

चलते चलते....

कितने मौसम बदल गए

कितने साथी बिछुड़ गए

कितने नए जुड़ गए...

मूल्यों की परिभाषा बदल ग

सिद्धांतों के परिधान बदल गए

नए ज़माने की मानो

चाल ही बदल ग...

 

पर मन के भाव...

वो अब भी वही हैं

अनुभूतियों की

अभिव्यक्ति तक की यात्रा

अब भी वही है

दुर्गम, और छोटी सी....

 

मन में ज्वार-भाटा उठता है

कुछ देर उथल- पुथल मचा

मंथन करता है,

फिर कलम को स्याही में डूबा देख

कुछ आश्वासन पाता है

अंततः कागज़ तक पहुँचकर ही

पूर्ण मुक्ति पाता है।

 

मन, इस सफर को

सहृदय, सहर्ष


बार-बार तय करता है,

बार-बार दोहराने की लालसा रखता है

अनन्त, अकल्पनीय संतुष्टि पाता है

 

और अभिव्यक्तियों का कारवाँ

यूँ ही बढ़ता जाता है।

-0-