नवगीत
हे वर्ष नव
-डॉ.शिवजी श्रीवास्तव
काल के गतिमान रथ पर बैठकर
आ रहा है वर्ष नव।
करें अगवानी
उतारें आरती
और दें शुभकामनाएँ हम परस्पर
हास की, उल्लास
की
मधुमास की
करें शुभ संकल्प सारे
प्रिय अभी
वक्त का रथ
लौटकर
आता नहीं है फिर कभी
क्या पता कब
काल हो शिव सम सदय
राह में मंगल बिखेरे
दे अभय
और कब हो रुष्ट
बनकर रुद्र
भीषण करे ताण्डव
मचे विप्लव।
चलो हम सब करें
मिलकर प्रार्थनाएँ
हँसें कलियाँ
और भौंरे गुनगुनाएँ
उड़ सकें आकाश में
निर्द्वंद्व चिड़ियाँ
बाज के दुःस्वप्न
उनको ना डराएँ
ग्रस न पाये
खिलखिलाती धूप को
आतंक का कोहरा
कर न पायें
आँधियाँ उन्माद की
रक्तिम धरा
हर दिशा में
हो छटा ऋतुराज की
मृदु समीरण चलें मंथर
गंध की ले पालकी
फले फूले वृक्ष पर हों
नीड़ सुंदर
चिरई-चिरवा कर रहे हों
केलि मनहर
भोर से ही चहचहाएँ
करें कलरव
इस तरह रहना बने
तुम वर्ष भर
नवल रथ पर आ रहे
हे वर्ष नव।
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- 2,विवेक विहार मैनपुरी
Shivji Srivastava <shivjisri@gmailcom>
mob9412069692
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2-क्षणिकाएँ- मंजूषा 'मन'
1
मन
ऊबा -ऊबा है
जाने क्या है जो
मन में चुभा है।
2
धड़कन
थमी -थमी -सी है
बार बार लगता है
जैसे कुछ कमी सी है।
3
दिल,
उदास बड़ा है
दिल के दरवाजे पे
दर्द खड़ा है।
4
प्यार,
देता है दगा
कहाँ हुआ कभी
प्यार किसी का सगा।
5
जीवन,
आसान नहीं जीना
जीना है तो सीखो
छुप -छुप आँसू पीना।
6
स्वप्न,
पलकों के भीतर
किरचें बन डसते
इन स्वप्नों में
हम हैं फँसते।
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