पथ के साथी

Wednesday, December 11, 2024

1442-अनुभूतियाँ

  रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

1


1

कोई मिलता भी कैसे, चाहा नहीं किसी को।

सिर्फ चाहा जब तुम्हें ही, समय पाखी बन उड़ा..।

2

जाऊँगा कहाँ मैं तुम्हारे बिना

रही तुम्हीं मंजिल, रास्ता तुम्हीं हो!

3

भीड़ और कोलहल, फिर भी अकेला मन

कोई ना आया, याद तेरी आ गई!

4

कैसे मैं तेरा दुःख बाँटूँ

कैसे पाश दुःखों के काटूँ

निशदिन सोचूँ राह ना पाऊँ

पता नहीं किस द्वारे जाऊँ

5

जिस पल सोचा ढंग से जी लें,

तभी किसी ने पत्थर मारा।

कौन पाप मैंने कर डाला

सोच रहा है मन बेचारा।

6

महलों की रौशनी भटकाती हैं उम्रभर!

रह -रहकर हमें टपकता छप्पर याद आया।

7

हो कितना भी अँधेरा, तुम्हें कभी रुकना नहीं है।

सुख -दुःख मौसम समझ लो, बीत  जाएँगे सभी

हम तुम्हारे साथ हैं, तुम्हें पथ में रुकना नहीं है।

8


तुम समुद्र हो न
?

कहाँ से आते हो?

इतना सारा प्यार

कहाँ से लाते हो!

कुछ तो बोलो

वाणी में वही मिश्री घोलो

9

मैं तुम्हारी रूह का ही एक हिस्सा हूँ

लघुकथा में ज्यों पिरोया एक किस्सा हूँ ।

10

पता नहीं कैसे हो त्राण?

तुझमें अटके मेरे प्राण।

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