भीकम सिंह
1
पानी का भार लेकर
बोझिल हुई हवा 
लंबे रस्तों पर
लौट रहे मेघ ,
एक कोने में पड़ी दिखी 
पानी पीती हुई तलैया
गाँव में नाच उठे खेत
ता - ता  थय्या  ।
2
नदी की  देख दुर्गत
बचाने आए मेघ
रोटी में ज्यों नमक ,
कहा-सुनी हुई 
कुछ सयानें मेघों में 
बीच में विद्युत गई धमक ।
3
पैरों में हवा की चप्पल 
मेघों तक नहीं पहुँचती 
नंगे पैर चलते हैं 
मानसूनी यात्राओं पर ,
सूखे खेतों पर खड़े होते
बरसते नहीं 
चकित होते 
कड़कती बिजली  पर ।
4
देर तक रुकी रही 
सिन्धु पर हवा 
सिन्धु होता रहा ख़फा 
पर मेघ नहीं आए ,
निगाह झुकाए 
बदली ने कहा 
मुझे आती है शर्म 
अब इनको ढोते हुए  ।
5
बाढ़ में से देखा 
नदी ने कई बार 
लापता खेतों के 
वस्त्रों का तार-तार ,
तटों को धक्का देकर 
मुस्कराती है आज 
कल तक जो 
रो रही थी ज़ार- ज़ार।
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