1-अश्रु -भीकम सिंह
नैनों में घिरे
घटा-से
कभी
पलकों से झरें ।
उर से
उलझे हैं
अभी
क्या करें, क्या ना करें ।
अधरों
तक आ जाते हैं
ये अश्रु
और कहाँ मरें ।
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2-घनाक्षरी छंद
- निधि भार्गव मानवी
हँसता गाता खेलता, प्रीत का संसार दूँ
माँग में सजा के प्रीत, लिख डालूँ नयी रीत
मन भावनी ऋतु से, जीवन सँवार दूँ
अँखियों को चार कर, नेह की मिठास भर
सारे सुख
जगत के, प्रियतम
वार दूँ
चंदा मैं चकोर तुम, आशाओं की भोर
तुम
अपनी कोमल
बाँहों का आ तोहे हार दूँ
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