पथ के साथी

Thursday, October 23, 2014

दीप बने बाराती




डॉ हरदीप सन्धु
1

दीवाली रात 

दीप बने बाराती 

झूमे आँगन। 


2

मिट्टी का दिया 

चप्पा -चप्पा बलता 

बिखरती लौ। 

3

दीवट दिया 

भीतर औ बाहर 

घर रौशन। 
-0- 
ज्योत्स्ना प्रदीप
1
रात में भोर
दीपों का जमघट
क्रांति की ओर॥
2
न जात-पात
न देखे दिन- रात
दीप तो जले।
3
सहमा तम
दीपक तले छुपा
कुछ रूआँसा ।
-0-