डॉ हरदीप सन्धु
1
दीवाली रात
दीप बने बाराती
झूमे आँगन।
2
मिट्टी का दिया
चप्पा -चप्पा बलता
बिखरती लौ।
3
दीवट दिया
भीतर औ बाहर
घर रौशन।
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ज्योत्स्ना प्रदीप
1
रात में भोर
दीपों का जमघट
क्रांति की ओर॥
2
न जात-पात
न देखे दिन- रात
दीप तो जले।
3
सहमा तम
दीपक तले छुपा
कुछ रूआँसा ।
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